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________________ ૧૪ योगशास्त्र : पंचम प्रकाश अब आग्नेय मण्डल का स्वरूप कहते हैं वज्वालांचितं भीमं त्रिकोणं स्वस्तिकान्वितम् । मल्लिगापगं तबीजं, शेयमाग्नेयमण्डलम् ॥४६॥ अर्थ-ऊपर की ओर फैलती हुई ज्वालाओं से युक्त, भयानक त्रिकोण वाली, स्व. स्तिक के चिह्न से युक्त, अग्नि की चिनगारी के समान पिगलवर्ण वाला और अग्नि के बीज 'रेफ' से युक्त आग्नेय मण्डल जानना चाहिए। अब अश्रद्धालु को बोष देने के लिए कहते हैं अभ्यासेन स्वसंवेद्य, स्यान्मण्डलचतुष्टयम् । क्रमेण संचरनत्र, वायुयश्चतुविधः ॥४७॥ अर्थ-इस विषय का अभ्यास करने से अनुभव द्वारा चारों मंडलों को जाना जा सकता है । इन चारों मण्डलों में संचार करने वाला वायु भी चार प्रकार का होता है। इसका क्रमशः वर्णन करते हैं नासिकारन्ध्रमापूर्य, पीतवर्णः शनैर्वहन् । कवोष्णोऽष्टांगुलः स्वच्छो, भवेद वायुः पुरन्दरः।।४८॥ अर्थ-पृथ्वीतत्व का पुरन्दर नामक वायु पीले रंग का है, उसका स्पर्श कुछ उष्ण और कुछ शोत है। वह स्वच्छ है। धीरे धीरे बहता हुआ नासिका के छिद्र को पूर्ण करके वह आठ अंगुल बाहर तक बहता है। धवलः शीतलोऽधस्तात्, त्वरितं त्वरितं वहन् । द्वादशांगुलमानश्च, वायुर्वरुण उच्यते ॥४९॥ अर्थ-जिसका सफेद वर्ण है, शीत स्पर्श है, और नीचे की ओर बारह अंगुल तक जल्दी-जल्दी बहने वाला है, उसे जलतत्व का वरुण वायु कहते हैं। __उष्णः शीतश्च, कृष्णश्च, वस्तिर्यगनारतम् । षडंगुलप्रमाणश्च वायुः पवनसंशितः ॥५०॥ __ अर्थ-पवन नाम का वायुतत्व कुछ उष्ण और कुछ शीत होता है, उसका वर्ण काला है और वह हमेशा छह अगुल प्रमाण तिरछा बहता रहता है। बालावित्यसमज्योतिरत्युष्णश्चतुरंगुलः । आवर्त्तवान् वहन्नूध्वं, पवनो बहनः स्मृतः ॥५१॥ अर्थ-अग्नितत्त्व का वहन नामक वायु उदीयमान बालसूर्य के समान लाल वर्ण बाला है, अति-उष्णस्पर्श वाला है और बटर (घूमती हुई आंघो) की तरह चार बंगुल ऊंचा बहता है।"
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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