SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 493
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाए और बाम्यन्तरतप के भेद, प्रभेद और लक्षण भी दोषों का प्रयत्नपूर्वक शोषण किया जाय तो दोषमय होते हैं, इसी प्रकार संवर से रोके हुए संचित कर्मों को आत्मा तपस्या से जला देता है । तप वाह्य और आभ्यन्तर दो प्रकार का है । सर्वप्रथम बाह्यतप के भेद कहते हैं___ अनशनमौनोदर्य वत्तः संक्षेपणं तथा । रसत्यागस्तनुक्लेशो लीनतेति बहिस्तपः ॥९॥ अर्थ-आहारत्यागरूप अनशन, ऊनोदरी, वृत्तिसंक्षेप, रसपरित्याग, कायक्लेश एवं संलीनता ; इस प्रकार बाह्यतप ६ प्रकार का है । व्याख्या-(1) अनशन-तप दो प्रकार का है। एक परिमित समय के लिए, दूसरा जीवनपर्यन्त तक का । इत्वरिक अनशन-जो नमस्कारहित (नौकारमी) से ले कर भगवान् महावीर के शासन में ६ महीने (लगातार) निराहार तक होता है। श्रीऋपभदेव के शासन में एक वर्ष तक और बीच के २२ तीर्थकरो के शासन में ८ मास तक का अनशन हो सकता था। जीवनपर्यन्त का अनशन तीन प्रकार का है-पादपोपगमन, इंगिनी और भक्तप्रत्याख्यान | पावपोपगमन के दो भेद है- व्याघातमाहित, न्याघातरहित । आयुष्य शेष होने पर किसी व्याधि के उत्पन्न होने से साधक महावेदना भोग रहा हो, उस समय इस प्रकार का अनशन करके प्राणत्याग किया जाय वह सव्याघात होता है; दूसरा निर्व्याघात अनशन इस प्रकार का होता है कि कोई महाभाग्यशाली यह सोच कर कि 'मैंने अपने शिष्य को ग्रहण व आसेवन शिक्षा दे कर तैयार किया, गच्छ का भलीभांति पालन किया, उपविहार भी किया, अब उम्र पक जाने के कारण समाधिमरण के लिए तैयार हुआ हूँ' इस प्रकार उम्र परिपक्व हो जाने पर प्रसस्थावरजन्तुरहित स्थान पर वृक्ष की तरह निश्चेष्ट हो कर स्थिर रहे, चित्त प्राण छूटने तक प्रशस्त ध्यान में स्थिर रखे। इस कारण पादपोगमन अनशन दो प्रकार का कहा। इंगिनीमरण - शास्त्रोक्त क्रियाविशेष से युक्त जो अनशन होता है, वह इंगिनी है। इस मरण को स्वीकार करने वाला उसी क्रम से आयुष्य की स्थिति जान कर, तथाप्रकार की स्थंडिलभूमि में अकेला चार प्रकार के आहार का त्याग करके छाया से धूप मे और धूप से छाया में आते-जाते, स्थानपरिवर्तन करते समय शुभध्यानपरायण रह कर समाधिपूर्वक प्राणत्याग करता है। तीसग यावज्जीव अनशन मक्तप्रत्याख्यान है। इसमें साधक गच्छ-सम्प्रदाय में रहता हुआ कोमल संथारा बिछा कर, शरीर और उपकरणों की ममता का त्याग करके चारों आहार का प्रत्याख्यान करे । स्वयं नमस्कारमंत्र का उच्चारण करे अथवा सेवा में रहे हुए साधु नमस्कारमंत्र सुनाएं। करवट बदलना हो, तब करवट बदले और समाधिपूर्वक मृत्यु स्वीकार करे, उसे भक्तप्रत्याख्यान अनशन कहते हैं। (२) ऊनोदरी--जिसमे उदर के लिए पर्याप्त आहार से कम किया जाय, यानी उदर ऊन-कम रखा जाय, वह ऊनोदरी तप कहलाता है। उसकी क्रिया या भाव औनोदर्य है। इसके चार भेद हैं-अल्पाहार-ऊनोदरी, आधे से कम ऊनोदरी, अर्ध-ऊनोदरी, और प्राप्त आहार से कुछ कम ऊनोदरी। पुरुष का आहार ३२ कौर का माना जाता है। यहाँ उत्कृष्ट और जघन्य छोड़ कर मध्यम कवल का ग्रहण करना। अपने मुख-विवर के अनुसार कवल लेना चाहिए। जिससे मुख विकृतिमय न दिखाई दे। आठ कौर का आहार करना अल्पाहार ऊनोदरी है, जिसमें आधे के करीब (निकट) यानी १२ कौर लिये जाय, वह उपाध-ऊनोदरी होती है; सोलह कौर लिये जाय तो अर्ध-उनोदरी होती है। बत्तीस कौर का आहारप्रमाण माना जाता है, उनमें एक, दो आदि कम से कम
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy