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________________ योगशास्त्र : प्रथम प्रकाश उसके बाद देवों द्वारा मांगल्य की हुई सुमंगलादेवी ने भरत और ब्राह्मी के जोड़े को जन्म दिया। तीनो लोक को आनदित करने वाली सुनंदादेवी ने महाबलशाली बाहुबलि और अतिसुन्दर रूप वाली सुन्दरी को युगलरूप में जन्म दिया। इसके बाद भी सुमगला और सुनंदा देवी दोनों ने प्रत्येक ने उनचास, उनचास बलवान युगलों को जन्म दिया। सभी संतान साक्षात् देवों के रूपों को मात करने वाली थी। ऋषभदेव का राज्याभिषेक-एक दिन सभी युगलिये एकत्रित हो कर हाथ ऊंचे करके नाभिकुलकर से पुकार करने लगे-"अन्याय हुआ, अन्याय हुआ'। अब तो अकार्य करने वाले लोग हकार, मकार और धिक्कार नाम की सुन्दर नीतियों को भी नही मानते ।" यह सुन कर नाभि कुलकर ने युगलियों से कहा- "इस अकार्य से तुम्हारी रक्षा ऋपभ करेगा। अतः अब उसकी आज्ञानुमार चलो।" उस समय नाभिकुलकर की आज्ञा से राज्य की स्थिति प्रशस्त करने हेतु तीन ज्ञानधारी प्रभु ने उन्हें शिक्षा दी कि "मर्यादाभग करने वाले अपराधी को अगर कोई रोक सकता है. तो राजा ही। अतः उसे ऊँचे आसन पर बिठा कर उसका जल से अभिषेक करना चाहिए।" प्रभु की बान सुन कर उनके कहने के अनुसार सभी युनिंग पत्तों के दौने बना कर उसमें जल लेने के लिए जलाशय मे गए। उम समय इन्द्र का आसन चलायमान हुआ। उससे अवधिज्ञान से जाना कि भगवान् के राज्याभिषेक का ममय हो गया है । अत. इन्द्रमहाराज वहां आए । उसने प्रभु को रत्नजटित सिंहासन पर बिठा कर राज्याभिषेक किया। मुकुट आदि आभूषणों से उन्हें सुसज्जित किया। इधर हाथ जोड़ कर और कमलपत्र के दोनों में आने मन के समान स्वच्छ जल ले कर युगलिये भी पहुंचे । उस समय अभिषिक्त, एवं वस्त्राभूपणों से सुसज्जिन मुकुट सिर पर धारण किये हुए सिंहासनासीन प्रभु ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो उदयाचल पर्वत पर सूर्य विराजमान हो । शुभ्र वस्त्रों से वे आकाश में शरद ऋतु के मंघ-के-मे सुशोभित हो रहे थे । प्रभु के दोनों ओर शरदऋतु के नवनीत एवं हंम के समान मनोहर उज्ज्वल चामर ढल रहे थे। विनीता नगरी का निर्माण एवं वर्णन- अभिषेक किये हुए प्रभु को देख कर युगलिये आश्चर्य में पड़ गए । उन विनीत युगलियो ने यह मोच कर कि ऐसे अलंकृत भगवान के मस्तक पर जल डालना योग्य नहीं है. अन प्रभु के चरणकमलों पर जल डाल दिया। यह देख कर इन्द्रमहाराज ने खुश होकर नौ योजन चौड़ी वारद योजन लम्बी विनीता नगरी बनाने की कुबरदेव को आज्ञा दी। इन्द्र वहां से अपने स्थान पर लौट आए । उधर कुवे ने भी माणिक्य-मुकुट के समान रत्नमय और धरती पर अजय विनीता नगरी बमाई, जो बाद में अयोध्या, नाम से प्रसिद्ध हुई। उम नगगे का निर्माण कर मरलम्वभावी कुबेर ने अक्षय रत्न, वस्त्र और धन-धान्य से उसे भर दी। हीरो, नीलम और बड्यरत्न से बनाये हुए महल की विविध रंग की किरणों से आकाश में बिना दीवार के ही चित्र बन गये थे। उसके किले पर तेजस्वी माणिक्य के बनाये हुए कंगूरे खेचरों के लिये अनायास दर्पण का नाम करते थे। उम नगरी के घर-घर में धन आ गया। मोतियों के स्वस्तिक बना दिये थे. जिममे बालिकाएं स्वेच्छा से कंकड़ों की तरह खेलती थी। उस नगरी के उद्यान में लगे हुए ऊंचे वृक्षों की चोटी में टकग कर खंचरियों के विमान थोड़ी देर के लिए पक्षियों के घोसले से लगते थे। उस नगरी के बाजारों में और महलों मे बड़े बड़े ऊँचे रत्नों के ढेर को देख कर रोहणाचल पर्वत भी कीचड़ के ढेर जमा लगता था । वहाँ गृहवापिकाएं जल-क्रीड़ा में एकाग्र बनी स्त्रियों के टूटे हुए हार के मोतियों
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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