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________________ योगशास्त्र : तृतीय प्रकाश 'पांच प्रकार के आचार की विशुद्धि के लिए साधु और श्रावक भी गुरु के साथ प्रतिक्रमण करे, और गुरुमहाराज के अभाव में श्रावक अकेला भी करे ॥ १॥ सर्व प्रथम देववन्दन करके प्रारम्भ में चार खमासमणा दे कर 'भगवान हं !' ....... " आदि कह कर भूमितल पर मस्तक लगा कर 'सव्वस्स वि' बोले । उसके बाद सारे अतिचारों का मिच्छामि दुबक' दे ॥२॥ उसके बाद सामायिकसूत्रयुक्त 'इच्छामि ठामि काउस्सग्गं' आदि सूत्र बोल कर दोनों हाथ नीचे लटका कर कोहनी से चोलपट्टे को कमर के उपर दबा कर रखे || ३|| और घोटक आदि १६ दोषों से रहित काउसग्ग करे । उसमें चोलपट्टा नाभि से चार अंगुल नीचे और घुटने से चार अंगुल ऊपर रखे, ( श्रावक भी इस तरह धोती रखे) ॥४॥ काउस्सग्ग में दिन में लगे हुए अतिचार को क्रमशः हृदय में धारण- ( स्मरण) करे और णमोक्कारमंत्र बोल कर काउस्सग्ग पूर्ण करे। फिर प्रकटरूप में पूरा लोगस्स कहे ||५|| तदनन्तर संडासा प्रमार्जन कर नीचे बैठ कर, दोनों हाथों को, स्पर्श न हो इस तरह लम्बे करके पच्चीस बोल से मुहपत्ती और पच्चीस बोल से शरीर का प्रतिलेखन करे || ६ || उसके बाद खड़े हो कर विनय सहित विधिपूर्वक बत्तीस दोषों से रहित पच्चीस आवश्यक - विशुद्ध वन्दन करे ||७|| तदनन्तर कमर के ऊपर के भाग को अच्छी तरह नमा कर दोनों हाथों में मुहपत्ती और रजोहरण पकड़ कर, काउस्सग्ग में विचार किये हुए अतिचारों को ज्ञानादिक्रमानुसार गुरु के सामने प्रगट में निवेदन करे | ॥८॥ उसके बाद जयणा और विधिपूर्वक बैठ कर यतना से अप्रमत्त बन कर 'करेमि भंते' आदि कह कर 'वंदित सूत्र' बोले, उसमें अब्भुट्ठिओ मि आराहनाए आदि का शेष सूत्र बोलते समय विधिपूर्वक द्रव्य-भाव दोनों प्रकार से खड़ा हो जाय || ६ || तत्पश्चात् दो बार वन्दना दे कर मंडली में पांच अथवा इससे अधिक साधु हों तो अब्भुट्ठिओ बोल कर तीन से क्षमायाचना करे और बाद में दो वंदना दे कर आयरिय उवज्झाय आदि तीन गाथा बोले ॥ १० ॥ उसके बाद 'करेमि भंते, इच्छामि ठामि इत्यादि काउस्सग्ग के सूत्र कह कर काउस्सग्ग ( ध्यान ) में स्थित हो कर चारित्र के अतिचारों की शुद्धि के लिए दो लोगस्स का चिन्तन करे ।। ११।। उसके बाद विधिपूर्वक काउस्सग्ग पूर्ण कर सम्यक्त्व की शुद्धि के लिए प्रगटरूप में लोगस्स बोले तथा उसी की शुद्धि के लिए सव्वलोए अरिहंत चेद्रयाणं, कह कर, उन चैत्यों की आराधना के लिए काउस्सग्ग करे ।।१२।। उसमें एक लोगस्स का ध्यान करे, दर्शनशुद्धि वाले उस काउस्सग्ग को पार कर फिर श्रुतज्ञान की शुद्धि के लिए 'क्खरवर- दोबड्डे' सूत्र बोले ||१३|| फिर 'बंबेसु निम्मलयरा तक पच्चीस श्वासोच्छ्वास प्रमाण वाला लोगस्स का काउस्सग्ग करे और विधिपूर्वक पूर्ण करे । उसके बाद शुभ अनुष्ठान के फलस्वरूप सिद्धान बुद्धा' का सिद्धस्तव बोले || १४ || तदनंतर श्रुत-स्मृति के कारणभूत श्रुत देवता का काउस्सग्ग करें उसमें नवकार-मन्त्र का ध्यान पूर्ण करके श्रुत देवता की स्तुति बोले अथवा सुने || १५|| इस प्रकार क्षेत्र देवता का भी काउस्सग्ग करे, उसकी स्तुति बोले या सुने बाद में प्रगट में नवकार - मन्त्र बोले । फिर संडासा प्रमार्जन कर नीचे बैठं ।। १६ ।। उसके बाद पूर्वोक्त विधि के अनुसार मुहपत्ती-प्रतिलेखन करके दो वन्दना देकर 'इच्छामो अणुसट्ठि' कह कर घुटने के सहारे नीचे बैठे ॥ १७॥ फिर गुरुमहाराज 'नमोऽस्तु' की एक स्तुति कहें, उसके बाद बढ़ते अक्षर और बढ़ते स्वर से तीन स्तुति पूर्ण कहे ; तदनन्तर शक्रस्तवनमोत्थूणं और स्तवन बोल कर देवसिक प्रायश्चित्त का काउस्सग्ग करे || १८ || इस प्रकार देवसिक प्रतिक्रमण का क्रम पूर्ण हुआ । ; ३८६ रात्रिक प्रतिक्रमण की विधि भी इसी प्रकार है। इसमें पहले 'सव्बस्स वि' कह कर 'मिच्छामि युक्कड' से प्रतिक्रमण की स्थापना करके काउस्सग्ग करे || १६ | उसके बाद विधिपूर्वक चारित्राचार की
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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