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________________ पांचवें साध्वीक्षेत्र में दान देने का माहात्म्य ३२९ करने के लिए पात्रादि अन्य औपग्रहिक उपकरण-दंड आदि ; तथा रहने के लिए मकान आदि दान रूप में देना चाहिए। ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से साधु के जीवनयापन के लिए उपकारक न हो । इसलिए उनको सयमोपकारी सभी वस्तुओं का दान देना चाहिए । साधु-धर्म में दीक्षित होने के लिए उद्यत, संसारविरक्त अपने पुत्र-पुत्रियों को भी साधुसाध्वियों को समर्पित करना चाहिए । अधिक क्या कहें ? जिस-जिस उपाय से मुनिगण निराबाध (पीडारहित) वृत्ति से अपनी स्वपरकल्याणकारी मोक्षसाधना कर सकें; तदनुरूप जो भी कल्पनीय साधनसामग्री दो, वह सब प्रयत्नपूर्वक उन्हें देनी चाहिए। परन्तु यदि कोई साधु जिनवचनविरोधी हो अथवा जो सामग्री साधुधर्म की निन्दा कराने वाली हो, उसे अपनी शक्ति-अनुसार रोकना चाहिए। इसलिए कहा है कि-'समर्थ श्रावक पूर्वोक्त कारणों से प्रभु-आज्ञा से भ्रष्ट साध की उपेक्षा न करे । अपितु अनुकूल या प्रतिकूल उपायों से उसे हितशिक्षा दे कर मूलमार्ग पर आरूढ़ करने का प्रयत्न करे। (५) साध्वीक्षेत्र-ज्ञान-दर्शन-चारित्ररूप रत्नत्रयसम्पन्न साध्वीक्षेत्र में भी साधु के समान यथोचित आहार आदि का दान दे कर अपने धन का सदुपयोग करना चाहिए । यहाँ शंका करते हैं कि "स्त्रियों में सत्त्वरहितता तथा दुःशीलता आदि दुर्गुण होते हैं इसी कारण स्त्रियों को मोक्ष पाने का अधिकार नहीं है तो फिर उनको दिया हआ दान साध को दिये गए दान के समान कसे माना जाय?" इसका समाधान यों देते हैं 'स्त्रियों में सत्त्वहीनता की बात मिथ्या है; क्योंकि ब्राह्मी आदि कई साध्वियां घर-बार छोड़ कर साधुधर्म की अनुपम आराधना करने वाली हुई है, ऐसी महासत्वशाली साध्वियों को सत्त्वहीन कहना उचित नहीं हैं। कहा है कि 'शील-सत्त्व गुणों से प्रसिद्ध आर्या ब्राह्मी, सुन्दरी, राजीमती, प्रवतिनी चन्दनबाला आदि महासाध्वियां देवों तथा मनुष्यों द्वारा पूजनीय हुई हैं, तथा गृहस्थ-अवस्था में भी इस जगत् में सुन्दर सत्त्व और निर्मलशील से प्रसिद्ध सती सीता आदि स्त्रियों को सन्वहीन या शीलरहित कैसे कहा जा सकता है ? राज्य, लक्ष्मी, पति, पुत्र, भाई, कुटुम्ब आदि के स्नेहसम्बन्धों का परित्याग कर दीक्षा का भार उठाने वाली सत्यभामा आदि स्त्रियों को असत्त्वशाली कैसे कहा जा सकता है ? इस कारण से रत्नत्रय की आराधिका, प्राणान्त कष्ट में भी शील को सुरक्षित रखने वाली, और महाघोर तपस्या करने में सत्व वाली साध्वियाँ दुश्चरित्र कसे हो सकती हैं ? यहां फिर प्रश्न उठाया जाता है कि महापाप और मिथ्यात्व के कारण ही जीव स्त्रीत्व प्राप्त करता है ; अत: सम्यग्दृष्टि जीव कदापि स्त्रीत्व प्राप्त नहीं करता है, तो फिर स्त्रीत्व-शरीर में रहा हुआ आत्मा मोक्ष कसे जा सकता है ? इसके उत्तर में कहते हैं- 'ऐसा कहना यथार्थ नहीं है । सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय ही सभी कर्मों की स्थिति एक कोटाकोटी सागरोपम से कम हो जाती है और उस समय मिथ्यात्व मोहनीय आदि का भी क्षयोपशम होता है । मिथ्यात्व-सहित पापकर्म के होने का कोई कारण नहीं । स्त्री को सम्यक्त्व-प्राप्ति होते ही मिथ्यात्व आदि का उदय समाप्त हो जाता है। अतः स्त्री को भी सम्यक्त्वप्राप्ति की असंभावना नहीं कह सकते और स्त्री मोक्षसाधना नहीं कर सकती, ऐसा भी नहीं कह सकते। कहा भी है 'आर्या अर्थात् साध्वी जिनवचन जानती है, उस पर श्रद्धा करती है, समग्ररूप से चारित्र का पालन भी करती है । इस कारण उसके लिए मोक्षप्राप्ति असंभव नहीं है । अदृष्ट (न देखी हुई) चीज विरोध का कारण नहीं हो सकती, अर्थात् मोक्ष की असंभाव्यता का कारण देखे बिना स्त्रियों के लिए मोक्ष
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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