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________________ २५८ योगशास्त्र : तृतीय प्रकाश में ऐसा वचन सुना जाता है कि 'गाय का स्पर्श करने से पापनाश हो जाता है; वृक्षों को छेदन करने से पूजने से, बकरे चिड़िया आदि पशुपक्षियों का वध करने से स्वर्ग मिलता है; ब्राह्मण को भोजन देने से पितर आदि पूर्वजों की तृप्ति होती है; कपट करने वाले देव भी आप्त है. अग्नि में होमा हुआ हवि देवों को प्रीतिकारक होता है। इस प्रकार के असंगत विधानों या श्र तिवचनों पर युक्तिकुशल पुरुप कैसे विश्वास कर सकता है ? कहा भी है-विष्ठा खाने वाली गाय का स्पर्श करने से पापों का नाश हो जाता है, अज्ञानी वृक्ष पूजनीय हैं, बकरे के वध से स्वर्ग मिलता है, ब्राह्मण को भोजन करवाने से पितृज (पितर) तृप्त हो जाते हैं, कपट करने वाले देव आप्त माने जाते हैं, अग्नि में किया हुआ हवन देवों को पहुंच जाता है; इत्यादि वचनों से न जाने, श्रुति की निःसारवाणी की कैसी लीला है ? इस कारण मांस से देवपूजा आदि का तथाकथित शास्त्र में जो विधान है, वह अज्ञानमय है। थोड़े में ही समझ लें। अधिक विस्तारपूर्वक कहने से क्या लाभ ? ___ कोई यह शंका कर सकता है कि मंत्र से संस्कारित होने से अग्नि जलाती या पकाती नही है, तथा वह मांस भी मंत्र-संस्कृत होने से दोषकारक नहीं होता । मनु ने कहा है कि शाश्वत वेदविधि में आस्था रखने वाले को मंत्र से संस्कारित किये बिना किसी भी प्रकार पशुभक्षण नहीं करना चाहिए, अपितु मंत्रों से संस्कारित मांस का भक्षण करना चाहिए । इसी बात का खण्डन करते हैं मंत्रसंस्कृतमपप्याद्य यवाल्पमपि नो पलम् । भवेज्जीवितनाशाय हालाहललवोऽपि हि ॥३२॥ अर्थ मंत्रों से सुसंस्कृत हो जाने पर भी जौ के दाने जितना भी मांस नहीं खाना चाहिए। क्योंकि हलाहल विष को एक बूद भी तो जीवन को समाप्त हो कर देती है। व्याख्या मांस भले ही मंत्रों से पवित्र किया हुआ हो, किन्तु जी के दाने जितना जरा-सा भी खाने लायक नहीं है । जैसे अग्नि की दहन (जलान की) शक्ति को मत्र नहीं रोक सकता, वैसे ही मांस (चाहे मंत्रसंस्कृत हो) नरकादिगति को प्राप्त कराने वाली शक्ति को रोक नहीं सकता। यदि ऐसा (मत्रों से ही पापनाश) हो जाय तो फिर कोई भी व्यक्ति सभी प्रकार के घोर पार करके तथाकथित पापनाशक मंत्रों का ही बार-बार जप करके पापों से छुटकारा पा लेगा; कृतार्थ हो जायेगा। अगर मंत्रों से ही समस्त पाप नष्ट हो जाय तो फिर पापों का निपंध करना भी ब्यर्थ है। इसलिए जिस प्रकार थोड़ी-सी मदिरा पी लेने से भी नशा चढ़ जाता है; वस ही थोड़ा-सा भी मांस खा लेने पर भी पापकर्म का बन्धन हो जाता है। इसीलिए कहा है "जहर को थोड़ी सी बूदें भी जीवन को समाप्त कर देती हैं, वैसे ही जो के दाने जितना मांस भी दुर्गति में ले जाता है। अब मांस से होने वाले महादोष बता कर उपसंहार करते हैं सद्यः सम्माछतानन्तजन्नुसन्तानषितम् । नरकाध्वनि पाथेयं कोश्नीयात् पिशितं सुधीः ॥३३॥
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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