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________________ १३२ योगशास्त्र : द्वितीय प्रकाश मुझ अशरण अबला को आपकी शरण मिल गई है ।' कुमार के द्वारा आश्वासन दे कर पूछे जाने पर उसने कहा- 'भद्र ! मैं आपकी माताजी के भाई पुष्पचूल की पुत्री पुष्पवती नाम की कन्या हूं । मेरे माता-पिता द्वारा मैं आपको दी हुई हूं। विवाह के दिन की प्रतीक्षा करती हुई मैं एक दिन बावड़ी के किनारे स्थित उद्यान में हंसनी के सदृश क्रीड़ा करने गई थी। जिस प्रकार रावण सीता को बलात् अपहरण करके लंका ले आया था उसी भांति नाट्योन्मत्त नामक दुष्ट विद्याधर मुझे यहाँ अपहरण करके आया है । मेरी दृष्टि सहन न होने से शूपर्णखा-सुत की तरह विद्यासाधन के लिये उसने इस वेष्णुवन में प्रवेश किया है। वहां वह धूम्रपान करते हुए पैर ऊपर को करके विद्यासाधन कर रहा है । यदि आज उसे विद्या सिद्ध हो जायेगी तो आज ही वह मेरे साथ विधिवत् विवाह कर लेगा । मैं इसी चिन्ता में हूँ कि उसके चंगुल से कैसे छूटकारा पाऊ !' यह सुन कर कुमार ने बांस के ढेर मे स्थित उस व्यक्ति को खत्म कर देने का सारा वृत्तान्त बताया। प्रिय की प्राप्ति और अप्रिय का विनाश होने से पुष्पवती के हर्ष का पार न रहा। परम्परानुरागी इस युगल ने वहीं गांधर्व विवाह कर लिया । मंत्रविधि के बिना भी स्वेच्छा से किये हुए ऐसे विवाह को क्षत्रियों में उत्तम माना जाता है। विविध प्रकार के मधुर वचनों से उसके साथ संलाप व रतिक्रीड़ा करते हुए वह रात एक पहर के समान झटपट बीत गई। प्रात काल होते ही ब्रह्मदत्त ने आकाश मे खेचर स्त्रियों की भेड़ों कीसी आवाज सुनी। उसने आश्चर्यमुद्रा में पुष्पवती से पूछा - 'बिना मेघों के अकालवृष्टि के समान आकाश में अचानक यह आवाज कहाँ और कैसे हो रही है ?' उसने घबराते हुए कहा 'प्रियतम ! यह आवाज तो नाट्योन्मत्त की दो बहिनें खण्डा और विशाखा नामक विद्याधर- कुमारियों के आगमन की है । वे व्यर्थ ही उसके लिये विवाह सामग्री ले कर आ रही है। सच है, प्राणी मन में कुछ और ही सोचता है और देव कुछ और ही घटना घटित करता है।' मेरे ख्याल से आप कुछ समय के लिए यहाँ से अन्यत्र चले जाइये । आपके गुणों का बखान करके यह जान लूं कि विद्याधारियों के मन में उसकी क्या प्रतिक्रिया होती है ? उन्हें आपके प्रति अनुराग होता है या विराग ? जब मैं देखूंगी कि उनमें आपके प्रति अनुराग है तो लालझण्डी दिखा दूंगी, उसे देखते ही आप वापस लौट आना । अगर उनमें आपके प्रति विराग होगा तो मैं सफेद झण्डी बताऊंगी। जिसे देख कर आप अन्यत्र चले जाना ।' यह सुन कर ब्रह्मदत्त ने कहा- "प्रिये ! तुम जरा भी मत घबराओ । क्या मैं इतना कायर हूँ कि उनसे डर कर भाग जाऊ ? वे रुष्ट या तुष्ट होंगी तो मेरा क्या कर सकेंगी ?" पुष्पवती ने कहा- 'प्रियतम ! आपको उनसे भय है, यह मैं नहीं कहती। परन्तु शायद उनसे सम्बन्धित विद्याधर आपके विरोधी बन कर व्यर्थ ही कोई विघ्न खड़ा कर दें। अतः उनकी मनोवृत्ति जान लेने में हर्ज ही क्या है ? आप जरा देर के लिये दूसरी जगह एक कोने में छिप कर देखते रहें।" इस बात से सहमत हो को कुमार के अनुकूल जान कर भूल से कर कुमार एक ओर छिप गया। पुष्पवती ने उन विद्याधारियों लाल के बदले सफेद झंडी हिलाई । कुमार भी उसे देख कर भक्तिवश वहां से पुष्पवती के पास लौट आया । प्रिया के आग्रह से कुछ दिन वहां रह कर वह आगे चल पड़ा। साहसी मनुष्यों को किसी का भी भय नहीं होता। ऐरावत हस्ती जैसे मानसरोवर में प्रवेश करता है, उसी प्रकार कुमार ने भी उसमें प्रवेश किया । उसमें स्नान करके और इच्छानुमार अमृतसम जल पी कर ब्रह्मदत्त उस विकट अरण्य को पार करके शाम को एक महासरोवर के तीर पर उसी तरह पहुंचा, जैसे दिनभर आकाश में घूम कर पक्षी शाम को अपने घोसलों में आ पहुंचते हैं, सूर्य जैसे दिनभर आकाश में घूम कर शाम को समुद्र में घुस जाता है । वहाँ से प्रातःकाल चल कर कुमार दोपहर तक एक सरोवर के तट पर पहुँचा। वहाँ अच्छी
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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