SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२ दनिया यापिमि, हीहिपि दनीहि यायोमि.. मतहि पिदत्तीहि यामि एकाहिक पाहारं पाहारमि, द्वीहिकं पि पाहारं पाहारेमि... पं..."मताहिकं पाहारं पाहारेमि, इनि एवम् प्रडमामि पि प्राहा पाहामि इति एवरूपं अद्धमासिकं पि पग्यिायमनं भोजनानुयोग मनुयुत्तो विहम । केममम्मुलोचको पिहोमि, केममम्मुलोचनानुयोग मनुपुन्तो, याव उदक विन्दुन्हि पि में दया पन्चुट्टिना होनि-माहं खुद के पाणे विममगते मंघानं प्रापटेमि ति। "मो नना मी मिन्नो चेब, एको मिमनके बेन । नमो न चरिंगमामीनो, एमनापमुनो मनीति ।।" -मुत्तपिटके मन्त्रिमनिकाय, महामोहनादमृत, पृ. १०५. "मिटा महानाम ममयं गजगह विहरामि गिज्यकटे-पन्दने ! तेन खोपन मम येन मंबहला निगण्ठा इमिगिलियम्म कालमिलायं भन्थका हौनि प्रामन पगिक्विना, प्रोपवामिका दक्दानिप्पा कटका वेदना वदति। अथ खाई महानाम मायण्ह ममपं पटिमल्लाण कड़ितो येन मिगिल पम्मय काण मिला ग्रेन ने निग्गठा नेन उप मंक. मिमम उप मंकमिता ने निरगटे नदवीचम । किन्ह तुम्हें प्रावमा निरगंटा उभट्टका प्रामनपरिणिस्ता, प्रविमिका दुक्खा निप्पा कटका बेदना वेदिय याति-7वं बनेमहानाम ने निरगंठा में नदवीचं. निरगठी पाब मा नापना मव्वण मण्वदस्मावी अपग्नेिम शानदम्मन पग्जिानानि चरतो च निट्टना च मनम्य च मनतं ममितं ज्ञानदस्मनं पक्युपट्टितनि, मो एवं प्राह अन्थियो वा निगगंटा पूर्व पापं कम्मं कनं. २ इमाय कटकाय दुवकांग्कारिकाय निग्जेग्य यं पतन्य एग्हि कायेन मंवना, वाचाय भवना; मनमा संवता, नं पानि पागम्म कम्मम्म प्रकरणं, नि पुगणानं कम्मानं तपमा कतिभाभा, नवानं प्रकारण पायति अनबन्यवा, पार्यान अनवम्मवा कम्ममन्खपो, कम्मवखपा दुक्खवखयो, दुक्खक्पा बंदनाबाना यंदनाममा मन दुग्वं निग्जिण्णं भविम्मनि। न च पन प्रम्हाकं कच्चनि बंब समति च मन न अग्हा पनि मनाति ।" --बौद्ध ग्रन्थ मजित मनिकाय, पृ. १९२-६३. (महामा बुद्ध कहते है कि). है महानाम ! मैं एक ममय गजगह के गहकुट पर्वत पर घम रहा था. तब ऋपिगिरि के मीप कालशिला पर बहुन में निम्रन्थ (जैनमाधु) प्रामन छोड़कर उपनाम कर रहे , और ताइ नपस्या में लगे हुए थे। मैं मायंकाल उनके पाम गया और उनमें बोला, 'भो निम्रन्या ! नुम प्रामन छोड़कर उपक्रम कर मी कठिन तपस्या की बंदना का अनभव क्यों कर रहे हो? जब मैंन उनमें जमा कहा नब माध हम तरह बोले कि निग्रंथ ज्ञानपुत्र भगवान महाबीर मवंज़ पोर मवंदणी है, वे मब कुछ जानते हैं और देखते हैं। चलने. ठहरने, माने. जागनं मब हालतों में मदा उनका सनदर्शन उपस्थित रहता है। उन्होंने कहा है कि निग्रंन्यो ! तुमनं पहिले पाप कर्म किये है उनकी इम कटिन तपस्या से निजंग कर डाला। मन, वचन काय को गेंकन में पाप नहीं बंधता और तप करने से पुराने पाप मव दूर हो जाते हैं। हम नग्ह नये पापों के न होने से कर्मों का भय होता है. कमों के क्षय से दुःखों का तय होता है, दुःखों के नाण में बंदना नष्ट होती है और वंदना के नाश में मब दुःख दूर हो जाते हैं (तब बुद्ध कहते है) 'यह बात मने अच्छी लगती है और मैंने मन को टोक माल्म होती है।")
SR No.010812
Book TitleTirthankar Varddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandmuni
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1973
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy