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________________ ७० प्रतिवर्ष उनके परिनिर्वाण-दिवस के उपलक्ष्य में दीपावली पर्व मनाते हैं। श्री वीर प्रभु के निर्वाण के स्मारक रूप वीर निर्वाण संवत् प्रारम्भ हुआ है, जो कि प्रचलित सभी संवतों से प्राचीन (२५००) है। महावीर के नाम पर नगर तीर्थंकर महावीर की स्मृति में बंगाल-विहार के अनेक नगरों नाम तीर्थंकर के नामानरूप रक्खे गये । तीर्थंकर के जन्म नाम 'वर्द्धमान' पर (वर्दमान), 'वीर' नाम पर 'वीर भूमि' (वीरभूम) तीर्थंकर के चरण चिह्न और ध्वज चिह्न सिह' से 'सिंह भूमि' [ सिंहभूम] ["सिंहोहतां ध्वजाः-इति हेमचन्द्रः] नगर का नाम अब तक प्रचलित है। तीर्थकर महावीर और महात्मा बुद्ध तीर्थकर महावीर के समय में अन्य कई धर्म-प्रचारक हुए हैं, उनमें कपिलवस्तु के क्षत्रिय राजा शुद्धोधन के पुत्र गौतमबुद्ध अधिक विख्यात हैं । राजकुमार गौतम ने तरुण अवस्था में संसार से विरक्त होकर सव से पहले तीर्थकर महावीर के पूर्ववतो २३ वें तीर्थंकर पाश्वनाथ की १. "जिनेन्द्रवीरोऽपि विबाध्य संततं ममततो भव्यममहमति । प्रपच पावानगरी गरीयमी मनाहगंधानवने तीयके । चतुषंकालेर्धचतुर्षमासकः विहीनताविश्चतुरद्वशंपर्क सकातिके स्वातिष कृष्णभतमुप्रभानमन्ध्याममये म्वभावतः ।। पपातिकर्माणि निण्डयोगको विधय घाती धनद्विबंधन विबन्धनस्थानमवाय शंकरी निरन्तरायोरमुखानुबन्धनम् ।। ज्वलनदीपालिकया प्रवद्धया मुगमुः दीपितया प्रदीप्तया तदास्म पावानगरी समंततः प्रदीपिताकाशतला प्रकाशते ।। ततस्तु लोक: प्रतिवर्षमादरात् प्रमिटीपालिकयात्र भारत समुचतः पूजयितुं जिनेश्वरं जिनेन्द्रनिर्वाणविभूति भक्तिभाक् ।।' -हरिवंश पुराण, सगं ६६ २. सिहों लांछनान्यहंता क्रमात् ।'-प्रतिष्ठातिलक ११।३, लांछन स्थापन,
SR No.010812
Book TitleTirthankar Varddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandmuni
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1973
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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