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________________ ऐसी कठोर तपश्चर्या करते हुए वे देश-देशान्तर में भ्रमण करते रहे, नगर या गाँव में केवल भोजन के लिए आते थे। उसके सिवाय अपना शेष समय एकान्त स्थान, वन, पर्वत, गुफा नदी के किनारे, श्मशान, वाग आदि निर्जन स्थान में बिताते थे। वन के भयानक हिंसक पशु जव तीर्थंकर महावीर के निकट आते तो उन्हें देखते ही उनकी क्रूर हिंसक भावना शान्त हो जाती थी; अतः उनके निकट सिंह, हरिण, सर्प, न्यौला, विल्ली, चहा आदि जाति-विरोधी जीव भी द्वेष, बैर भावना छोड़कर प्रेम, शान्ति से क्रीड़ा किया करते थे ।* चन्दना-उद्धार इस प्रकार भ्रमण करते-करते तीर्थंकर महावीर एक वार वत्स देश की कौशाम्बी नगरी में आहार के लिए आये । वहाँ एक सेठ के घर सती चन्दना तलघर में वन्दी (कंदी) जैसे दिन काट रही थी, वहुत विपत्ति में थी, उसने सुना कि तीर्थंकर महावीर कौशाम्बी में पधार हैं। यह मुनते ही उसके हृदय में भावना हुई कि 'मैं भगवान को आहार कराऊँ', किन्तु वह तलघर के वन्दीगृह में पड़ी थी, बेड़ियाँ उसके पैरों में थीं, तपस्वी वर्द्धमान को आहार कराये तो कैसे कराये ? यह स्थिति उसकी चिन्ता और दुःख का और अधिक कारण बन गई। 'यादशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी' अर्थात् जिसकी जैसी भावना होती है, उसकी कार्य-सिद्धि भी वैसी ही होती है । इस नीति के अनुसार संयोग से तीर्थंकर महावीर चन्दना के घर की ओर आ निकले। उसी समय सौभाग्य से चन्दना के पैरों की बेड़ियाँ टूट गयीं और वह तलघर से वाहर निकलकर द्वार पर आ खड़ी हुई। जैसे ही श्री वर्द्धमान उस द्वार पर आये कि चन्दना ने बड़े हर्ष और * 'सारंगी सिंहशावं स्पृशति सुतधिया नन्दिनी व्याघ्रपोतं मार्जारी हंसवालं प्रणयपरवशा केकि कान्ता भुजंगम् । बैराण्याजन्मजातान्यपि गलितमदा जन्तवोऽन्ये त्यजन्ति मित्वा साम्यैकरूढ़ प्रशमितकलुष योगिनं क्षीणमोहम् ।।' -मानार्णव
SR No.010812
Book TitleTirthankar Varddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandmuni
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1973
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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