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________________ खेलने वाले वालक भयभीत होकर इधर-उधर भागे परन्तु वर्द्धमान ने निर्भय होकर कठोर शब्दों में हाथी को ललकारा । हाथी को वर्द्धमान की ललकार सिंह-गर्जना से भी अधिक प्रभावशाली प्रतीत हुई अतः वह सहमकर खड़ा हो गया। भय से उसका मद सूख गया। तव वर्द्धमान उसके मस्तक पर जा चढ़े और अपनी वज्र मुष्टियों (मक्कों) के प्रहार से उसे विल्कुल निर्मद कर दिया। ___ तव कुण्डलपुर की जनता ने राजकुमार वर्द्धमान की निर्भयता और वीरता की वहुत प्रशंसा की और वर्द्धमान को 'वीर' नाम से पुकारने लगी, इस तरह राजकुमार वर्द्धमान का तीसरा नाम 'वीर' प्रसिद्ध होगया । एक दिन संगम नामक एक देव अत्यन्त भयानक विपधर का रूप धारण कर राजकुमार की निर्भीकता तथा शक्ति की परीक्षा करने आया। जहां पर वर्द्धमान कुमार अन्य किशोर वालकों के साथ एक वृक्ष के नीचे खेल रहे थे । वहाँ वह विकराल सर्प पुकार मारता हुआ उस वृक्ष से लिपट गया। उसे देखकर सब लड़के वहुत भयभीत हुए अपने-अपने प्राण बचाने के लिए वे इधर-उधर भागने लग, चीत्कार करने लगे. कुछ भय से मच्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े; परन्तु कुमार वर्द्धमान सर्प को देखकर रंच मात्र भी न डरे। उन्होंने निर्भयता पूर्वक सर्प के साथ कोड़ा की और उसे दूर कर दिया। तव राजकुमार वर्द्धमान की निर्भयता देखकर वह देव बहुत प्रसन्न हुआ और उसने प्रगट होकर वर्द्धमान तीर्थकर की स्तुति की एवं उनका नाम 'महावीर' रखा और वालक की कधे पर बिठाकर नृत्य करने लगा । कुमार वर्द्धमान के अतिरिक्त अन्य तीन कुमार थेचलघर, काकघर और पक्षधर । * 'बटवक्षमर्थकदा महान्तं मह डिभगाधिकाप वर्धमानम् । ग्ममाणमुदीक्ष्य मंगमाख्यो विबुधस्त्रायिन ममाममात् ।।' -प्रमग महाकविकृत, वर्षमान पग्त्रि, /६५.. 'संगमकनेंबदेवं तां गडकलुनुमिदं भय गहिन्यं ।। -पाचण्ण, वर्धमान पु. १४/६७.
SR No.010812
Book TitleTirthankar Varddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandmuni
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1973
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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