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________________ अभिषेकोत्सव के पश्चात् इन्द्र ऐरावत हाथी पर सवार होकर राजमार्ग से कुण्डलपुर आया। वाल-तीर्थंकर वर्धमान को इन्द्राणी पुनः माता त्रिशला के पास लिटा आयी; तदनन्तर समस्त देव-परिवार लौट गया। यह समय पूर्ववर्ती तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के २५० वर्ष पीछे का तथा ईसा से ५९९ वर्ष पहले का था। तीर्थकर वर्धमान शुक्ल पक्ष की द्वितीया के चन्द्रमा के समान बढ़ने लगे। अपनी वाल-लीलाओं से माता-पिता, समस्त राज-परिवार को आनन्दित करने लगे। जन्म से ही उनके शरीर में अनेक अनुपम विशेषताएं थीं-जैसे, उनका शरीर अनुपम मुन्दर था, शरीर के समस्त अंग-उपाङ्ग पूर्ण एवं ठीक थे, कोई भी अंग लेशमात्र हीन. अधिक, छोटा या वड़ा नहीं था; शरीर से सुगन्ध आती थी, पमीना नहीं आता था। वे वलशाली थे, उनके शरीर का रक्त दूध की तरह पवित्र था। उनकी पाचन-शक्ति असाधारण थी, जिससे उन्हें मल-मूत्र नहीं होता था; वाणी वहुत मधुर थी; शंख, चक्र, कमल, यव, धनुष आदि १००८ शुभ लक्षण एवं चिह्न उनके शरीर में थे। वे जन्म से ही महान ज्ञानी (अवधिज्ञानी) थे। जिस तरह वाहरी पदाथों को जानने के लिए उनको ज्ञान-ज्योति असाधारण थी, उमी तरह उनमें आध्यात्मिक स्वानुभूति भी अलौकिक थी, पूर्वभव मे उदीयमान क्षायिक सम्यक्त्व (अविनाशी-म्वात्मानुभव) उनको था। ऐमी अनेक अनुपम महिमामयी विशेषताओं के पुज तीर्थंकर थे । उत्तरोत्तर वढ़ते हा जव तीर्थकर वर्द्धमान को वय आठ वर्ष की हुई. तब उन्होंने विना प्रेरणा के स्वयं आत्मशुद्धि की दिशा में पग बढ़ाते हुए हिमा. असत्य, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पांच पापों के आंशिक त्याग की प्रतिज्ञा करके अहिंमा, मत्य, अचार्य, * 'पाश्वशतीर्थ मन्ताने पंचाशद् द्विशताब्द के नदभ्यन्तर बात्यमहावीरोज गातवान् ।।' उनपुगण २७, पृ. ४६२.
SR No.010812
Book TitleTirthankar Varddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandmuni
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1973
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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