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________________ गांधार पन्नगपदोपपदे व विवे दत्वा फणावदीधपो विधिवत्स ताम्याम् । धीरो विसय नय विद्विनिती कुमारी स्वावासमेव च जगाम एतेष्टकार्य। -जनाचार्य जिनसेन, आदि पुराण १९।१८५ (इस प्रकार नयों को जानने वाले धीर-वीर धरणेन्द्र ने उन दोनों को गान्धार पदा और पन्नगपदा नाम की दो विद्याएं दी और फिर अपना कार्य पूरा कर वृषभदेव के चरणों में विनय से झके हुए दोनों राजकुमारों को छोड़कर अपने निवास स्थान पर चला गया।) . . .' *"*"TS (गान्धार विद्या पन्नग विद्या चेति द्वे विद्ये) ___ सील नं. ११५/१९२६-३० सिन्धु-घाटी-मोहन-जो-दारो .... . -'नमि और विनमि प्रजापति वृषभदेव के साथ हो गये, वे वृषभदेव से राज्य माँग रहे थे; किन्तु वृषभदेव मौन थे। उस समय नागराज वृषभदेव की वन्दना करने आया। उस नागराज ने नमिविनमि को उक्त दोनों विद्याएँ दी और उनके लिए वैताड्य पर्वत पर उत्तर व दक्षिण श्रेणी में क्रमशः ६० और ५० नगर वसाये। * 'नमि विनर्माण जायण, नागिन्दो वेज्जदाण वेयड्ढे । उत्तर दाहिण सेढी, सट्ठी पनाम नगराई ।'–नावश्यक नियुक्ति 340 गंधव (प्राकृत), गंधर्व (संस्कृत), गन्दरवा (अवेस्ता), केन्टारम (यूनान)।
SR No.010812
Book TitleTirthankar Varddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandmuni
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1973
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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