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________________ कार - स्वमावसम्मुख रुचि होती है तभी सपके द्वारा कहे एप धर्मकी पहिचान होती है और तभी भाषकपना प्रकट होता है। जैनकुलमें जन्म लेनेसे ही कोई भावक नहीं हो जाता परन्तु अन्तरमें जैन परमेश्वर सर्वक्षदेवकी पहिचान करे और उनके द्वारा कहे हुए वस्तुस्वरूपको पहिचाने तभी भावकपना होता है। अरे, माकपना किसे कहते हैं इसकी भी बहुतसे जीवोंको खबर नहीं। इसलिये यहाँ देवत-उद्योतनमें पथमन्दीस्वामीने श्रावकके धर्मका उद्योत किया है, उसका स्वरूप प्रकाशित किया है। मांगलिकमें हमेशा बोलते हैं कि केबलिपण्णत्तो धम्मो शरणं पन्धज्जामि'अर्थात् मैं केवली भगवानके द्वारा कहे हुए धर्मकी शरण प्रहण करता हूँ। परन्तु सर्व-केवली कैसे हैं और उनके द्वारा कहे हुए धर्मका स्वरूप कैसा है उसकी पहिचान बिना किसकी शरण लेगा ? पहिवान करे तो सर्वशके धर्मकी शरण लेना कहलाता है, और उसे स्वाश्रयसे सम्यदर्शनादि धर्म प्रगट होते है । मात्र बोलनेसे धर्मकी शरण नहीं मिलती, परन्तु केवली भगवानने जैसा धर्म कहा है. उसकी पहिचान करके अपनेमें वैसा भाव प्रगट करे तो केवलीके धर्मकी शरण ली-कहलाये। सबसे पहले सर्वदेवकी और उनके द्वारा कहे हुए धर्मकी पहिचान करने. को कहा गया है। शास्त्रकारने मात्र बाह्य अतिशय द्वारा या समवसरणके वैभव द्वारा भगवानकी पहिचान नहीं कराई परन्तु सर्वतारूप चिड़ द्वारा भगवानकी पहिचान कराई, तथा उनके द्वारा कहा हुआ धर्म ही सत्य है ऐसा कहा है। जगतमें छह प्रकारके स्वतंत्र द्रव्य, नौ तत्त्व और प्रत्येक आत्माका पूर्ण स्वभाव जानकर स्वायसे धर्म बतानेवाली सर्पक्षकी वाणी, और रागादिक पराभितभावसे धर्म भगवाने वाली बानीकी वाणी, इनके बीच विवेक करना चाहिये । स्वामित शुद्धीपयोग कप शुक्लभ्यानके साधनसे भगवान सर्वश हुए है। प्रभा-यह शुक्लध्यान कैसा है? क्या इस शुक्लध्यानका रंग सफेद है? - उत्तर:-अरे भाई, शुक्लध्यान यह तो चैतन्यके मानन्दके भनुभयमें लीनताकी पारा है, यह तो केवलज्ञानप्राप्तिकी श्रेणी है। इसका रंग नहीं होता। सफेद रंग पर वो कपी पुद्गल पर्याय है। यहाँ शुक्लभ्यानमें 'शुक्ल' का अर्थ सफेद रंग नदी परन्तु शुक्लका गर्व है रागकी मलिनता बिना, उज्ज्वल पवित्रा या शुगलम्यान
SR No.010811
Book TitleShravak Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Soncharan Jain, Premchand Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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