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________________ स्वतंत्रताको घोषणा ] पदार्थके या अन्य गुणके आश्रयसे नहीं होता। उसका कर्ता कौन ?-कि वस्तु स्वयं कर्ता और उसका कार्य दोनों एक ही वस्तुमें होने का नियम है, वे भिन्न वस्तुमें नहीं होते। यह लकड़ी ऊपर उठी सो कार्य है। यह किसका कार्य है ?-कि कर्ताका कार्य, कर्ताके बिना कार्य नहीं होता । कर्ता कौन है ?-कि लकड़ीके रजकण ही लकड़ीकी इस अवस्थाके कर्ता हैं; यह हाथ, अंगुली या इच्छा उसका कर्ता नहीं हैं। ___ अब अन्तरका सूक्ष्म दृष्टान्त लें तो-किसी आत्मामें इच्छा और सम्यगदान दोनों परिणाम वर्तते हैं; वहाँ इच्छाके आधारसे सम्यग्ज्ञान नहीं है। इच्छा सम्यग्ज्ञानकी कर्ता नहीं है। आत्मा ही कर्ता होकर उस कार्यको करता है। कर्ताके बिना कर्म नहीं है और दूसरा कोई कर्ता नहीं है। इसलिये जीवकर्ता द्वारा जानकार्य होता है। इस प्रकार समस्त पदार्थोके सर्व कार्योंमें उस-उस पदार्थका ही कर्तापना है ऐसा समझना चाहिये। देखो भाई, यह तो सर्वज्ञ भगवानके घरकी बात है; उसे सुनकर सन्तुष्ट होना चाहिये । अहा! मन्तोंने वस्तुस्वरूप समझाकर मार्ग स्पष्ट कर दिया है। संतोंमे सारा मार्ग सरल और सुगम बना दिया है, उसमें बोयमें कहीं अटकना पड़े ऐसा नहीं है। परसे भिन्न ऐमा स्पष्ट वस्तुस्वरूप समझे तो मोन हो जाये। बाहरसे तथा अन्तरसे ऐसा मेरशान समझने पर मोक्ष हथेलीमें आ जाता है । मैं तो परसे पृथक है और मुझमें एक गुणका कार्य दूसरे गुणसे नहीं है-यह महाग सिद्धान्त समझने पर स्वाभयभावसे अपूर्व कल्याण प्रगट होता है। कर्म अपने कर्ताके बिना नहीं होता-यह बात तीसरे बोलमें कही; और चौथे बोलमें कर्ताकी (-वस्तुकी) स्थिति एकरूप अर्थात् सदा एक-समान नहीं होती परन्तु वह नये-नये परिणामोरूपसे बदलता रहता है-यह बात कहेंगे। हर बार प्रवचनमें इस चौथे बोलका विशेष विस्तार होता है; इस बार दूसरे बोलका विशेष विस्तार आया। कर्ताक बिना कार्य नहीं होता यह सिद्धान्त है: वहाँ कोई कहे कि यह जगत सो कार्य है और ईश्वर उसका कर्ता है, तो यह बात वस्तुस्वरूप की नहीं है। प्रत्येक वस्तु स्वयं ही अपनी पर्यायका ईश्वर है और वही कर्ता है। उससे भिन्न दूसरा कोई पर या अन्य कोई पदार्थ फर्ता नहीं है। पर्याय सो कार्य और पदार्थ रखका का।
SR No.010811
Book TitleShravak Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Soncharan Jain, Premchand Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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