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________________ भावकधर्म-प्रकाश . . . tute ...........[१९]....... धर्मात्मा इस कलियुगके कल्पवृक्ष हैं HEREBEBEBEESEBERRIES आचार्य कहते हैं कि पुण्यफलरूप चिन्तामणि आदिकी महिमा हमें नहीं; हमें तो यह दाता ही उत्तम गगता है कि जो धर्मकी ___ आराधना सहित दान करता है...अपनी शक्ति होते हुए भी धर्मकार्य रुके ऐसा धर्मी जीव देख नहीं सकता। RSSHRERESENTATERESTING धर्मात्मा-श्रावक दानादि द्वारा इस कालमें कल्पवृक्ष मादिका कार्य करते हैं, पेसा अब कहते हैं: चिन्तारत्न-मुरद्रु-काममुरभि-स्पर्शोपलाचा भुवि ख्याता एव परोपकारकरणे दृष्टा न ते केनचित् , तैरत्रोपकृतं न केषुचिदपि मायो न संभाव्यते तत्कार्याणि पुनः सदैव विदधत् दाता परं दृश्यते ॥ १९ ॥ जगत्में चिन्तामणि, कल्पवृक्ष, कामधेनु और पारस पत्थर परोपकार करने में प्रसिद्ध है, परन्तु यहाँ उपकार करते हुए उनको किसीने नहीं देगा, उसीमकार उन्होंने किसीको उपकृत नहीं किया और यहाँ उनकी संभावना भी प्रायः नहीं है। परन्तु दातार अकेला मनोवांछित दानसे सदेव इस चिन्तामणि मादिका काम करते हुए देखने में आता है। अतः सचा दाता पुरुष ही उन चिन्तामणि मादि पदार्थोसे उत्तम है। धर्मात्माके लिये परमार्थरूपसे चिन्तामणि तो अपनी आत्मा है कि जिसके चिन्तनसे केवलज्ञान और सम्यग्दर्शन आदि निधान प्रगट होते हैं। इस बैतन्यचिन्तामणि
SR No.010811
Book TitleShravak Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Soncharan Jain, Premchand Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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