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________________ [ आवकधर्म-प्रका ] इस तेरे गुणके जले हुए खुरखनको जो तू अकेला अकेला खावे और साधर्मी-प्रेम मरहमें उसका उपयोग न करे तो क्या कौवेसे भी तू गया-बीता हो गया ? अतः हे भाई, पात्रदानकी महिमा जानकर तू तेरी लक्ष्मीका सदुपयोग कर । प्रद्युम्न कुमारने पूर्वभवमें औषधिदान किया था, उससे कामदेव जैसा रूप तथा अनेक ऋद्धियाँ मिली थीं लक्ष्मणकी पटरानी विशल्यादेवीने पूर्वभवमें एक अजगरको करुणाभावसे अभयदान किया उससे ऐसी ऋद्धि मिली थी कि उसके स्मानके पानीले लक्ष्मण आदिकी मूर्च्छा उतर गई । वज्रजंघ और श्रीमती S की बात भी प्रसिद्ध है; वे आहारदानसे भोगभूमिमें उत्पन्न हुए और वहाँ मुनिराजके उपदेशसे उन्होंने सम्यग्दर्शन पाया था उनके आहारदानमें अनुमोदन करने वाले चारों जीव ( सिंह, बन्दर, नेवला और सूवर ) भी भोगभूमिमें उनके साथ हो जन्मे और सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सके । सम्यग्दर्शन कोई पूर्वके शुभरागका फल नहीं; परन्तु सम्यग्दर्शन हुवा इसलिये पूर्वके रागको परम्परा - कारण भी कहनेमें माता है, ऐसी उपचारकी पद्धति है । देव-गुरु- धर्मके प्रसंगमें बारम्बार दान करनेसे तेरे धर्मके संस्कार ताजे रहा करेंगे, और धर्मकी रुचिका बारम्बार चिन्तन होनेसे तुझें आगे बढ़नेका कारण बनेगा ।
SR No.010811
Book TitleShravak Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Soncharan Jain, Premchand Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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