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________________ ४५ अजोव-अधिकार उमो तरह यद्यपि जीव और कर्म का संयोग अनादिकाल से चला आया है परन्तु जीव और कर्म भिन्न-भिन्न हैं। फिर भी शुद्धस्वरूप के अनुभव के बिना प्रगटम्प में भिन्न-भिन्न नहीं होतं । जिस समय शुद्धस्वरूप का अनुभव होगा उसी समय भिन्न-भिन्न होंगे। संबंया से करवन एक काठ बोच खंडकर, जैसे राजहंस निरवार दूध जल कों। तंसे भेद ज्ञान निज मेदक सकति सेती, भित्र-भिन्न करे चिदानन्द प्रबगल कों॥ प्रधिकों पावे मनपर्य को अवस्था पावं, उमगि के माथे परमावधि के पल कों। याही भांति पूरण मरूप को उदोत पर, करं प्रतिबिंबित पदारथ सकल कों॥१३॥ ॥ इति दिनीयो अध्याय ॥
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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