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________________ अजीव-अधिकार भावार्थ-जो वर्णादिक व रागादिक दिखते तो हैं परन्तु जब स्वरूप का अनुभव हो तो मात्र विभाव परिणति है, वस्तु तो कुछ नहीं है ॥५॥ दोहा-परणारिक रागादि जड़, रूप हमारो नाहिं। एकब्रह्म नहिं दूसरो, दरोसे अनुभव माहि ॥५॥ उपजाति निर्वय॑ते येन यवत्र किंचितदेव तत्स्यान्न कपंचनान्यत् । समेण निवृत्तमिहासिकोशं पश्यन्ति रुक्मं न कचनासि ॥६॥ वस्तु के स्वरूप का विचार करें तो जो निश्चयल्प वस्तु का परिणाम जिस वस्तु से जैसा पर्यायल्प उपजता है, वैसा उपजा है तथापि उपजते हुए भी जिस द्रव्य से उपजा है द्रव्य तो वही है। निश्चय ही अन्य कुछ द्रव्यरूप नहीं हुआ । जैसे-प्रत्यक्ष है कि चांदी धातु से घर कर तलवार की म्यान बना कर तय्यार की गई। यद्यपि वह म्यानरूप हो गई फिर भी बस्तु विचार से तो वह चांदी ही है। ऐसा सब लोग देखते हैं, मानते हैं और कहने के लिए उसको चांदी की तलवार भी कहते हैं। तथापि ऐसा नहीं हैतलवार चांदी की नहीं हुई। ऐसी कहावत है कि जो तलवार चांदी की म्यान में रक्खी जाती है उसको कहने मात्र के लिए चांदी की तलवार कर दिया जाता है परन्तु चांदी की तो म्यान है, तलवार तो लोहे की है। चांदी की तलवार नहीं। चांदी की म्यान का संयोग होने से उसको चांदी की तलवार कहा जाता है ॥६॥ दोहा-साटो कहिये कनक को, कनक म्यान संयोग। न्यारो निरखत म्यान सों, लोह कहें सब लोग ॥६॥ उपजाति वर्णादिसामध्यमिदं विवन्तु निर्माणमेकस्य हि पुद्गलस्य । ततोऽस्स्विदं पुद्गल एव नात्मा यतः स विज्ञानधनस्ततोऽन्यः ॥७॥ हे जीव ! यह निश्चय से जान ले कि गुणस्थान, मार्गणास्थान, द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म इत्यादि जो भी अशुद्ध पर्याय विद्यमान हैं वे समस्त ही एकमात्र पुद्गल द्रव्य की ही चित्रकारी जैसी है। इस कारण मे शरीरादि
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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