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________________ ममयमार कलग टीका में ही गजा का ति होनी है । उमी तरह जीव के निज (अपने) चैतन्यगुण की स्तुति करने में ही जीव की स्तुति होती है, "मा कहा है ।।४।। मईया ..जाके देश धनि मों दमों दिशा पवित्र भई. जाक मेज प्रागे मब तेजवन के हैं। जाको कम्व निग्वि थकित महारूपवंत, जाके वपु वाम मों मुबाम और नुके हैं। जाको दिव्य ध्वनि मुनि श्रवण को मुम्ब होत, जाक नन नभन अनेक प्राय ढके हैं। तेई जिनगज जाके कहे विवहार गुरण, निश्चय निवि शुद्ध चेतन मों चके हैं ॥२४॥ प्रार्या प्राकारकवलितांवरमुपवनराजीनिगोर्गभूतितलं । पिबतोव हि नगरमिदं परिखावलयन पातालम् ॥२५॥ गजग्राम को परिक्रमा करती बाई इतना गहग : कि मानों पाताल अर्थान अधालाक का जल पाती है। नगर कोट इतना ऊना है कि जमे आकाग को ही निगल रहा हो । नगर को नहंदिन घर घने उपवन हैं कि माना ममग्न भूमनल पर छा जायग । एमा वह नगर है। भावार्थ नगर के नाग नरफ घना बाग है। इस तरह नगर की स्तुति करने में राजा का म्नति नहीं हाती है। यहा पर खाई का. कोट का, बाग का वर्णन किया वह ता राजा के गुण नहीं है । गजा के गृण है दान, पोम्प, जान उनका स्नान करने में राजा का स्तुनि होती है ।।२५। सर्वया ऊंचे-ऊंचे गढ़ के कांगुरे यों विराजत हैं. मानों नभ लोक लीलिवेको दांत दियो है ! मोई, चहं पोर उपवन की मघनताई, घेराकर मानों भूमिलोक घेर लियो है।। गहरी गंभीर खाई ताकी उपमा बताई, नीचोकरि प्रानन पाताल जल पियो है। ऐसो है नगर यामें नप को न अंग कोऊ, यों ही चिदानन्द सों शरीर भिन्न कियो है ।।२।।
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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