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________________ साध्य-साधक अधिकार २.४५ मो? जीव जानन जहान कौतुक महान, जाको कीरति कहाँ न अनादि अनन्त है ॥१२॥ मालिनी जयति सहजतेजः पुञ्जमज्जत्रिलोकी स्खलदखिलविकल्पोऽप्येक एव स्वरूपः । स्वरसविसरपूच्छिन्नतत्वोपलंमः, प्रसभनियमिताचिश्चिच्चमत्कार एषः ॥१३॥ अनुभव प्रत्यक्ष ज्ञानमात्र जीववस्तु सर्वकाल में जयवन्न प्रवर्ती। भावार्थ-वह माक्षात् उपादेय है। द्रव्य के स्वरूप भूत केवलज्ञान में जेय रूप में मग्न समस्त जेयवस्तु के कारण उम जीववस्तु में अनेक प्रकार पर्यायभेद उत्पन्न हुआ है तो भी वह एक ज्ञानमात्र जीयवस्तु है। चेतनारवरूप की अनन्त शक्ति में वह ममग्र है और अनन्त काल तक गाश्वत रहने वाले वस्तुम्वरूप की उमे प्राप्ति हुई है और ज्ञानावरणकर्म का विनाश हीने पर उसका नियमित केवलज्ञान बरूप प्रगट हुआ है। भावार्थ-परमात्मा माक्षात् निरावरण है ।।१३।।। मक्या-पंच परकार मानावरण को नाश करि, प्रगटो प्रसिद्ध जग माहि जगमगी है। जायक प्रभा में नाना नेय को प्रवस्था धरि, अनेक भई में एकता के रस पगो है। याही भांति रहेगी धनन्तकाल परयत, अनन्त शकति फेरि अनंत सों लगी है। नगोह देवल में केवल स्वाप शुद्ध, ऐमीज्ञानज्योति की सिखा ममाधि जगी है ॥१३॥ मालिनी अविचलितचिदात्मन्यात्मनात्मानमात्मन्यनवरतनिमग्नं धारयद्ध्वस्तमोहम् । उदितममृतचन्द्रज्योतिरेतत्समन्ताजज्बलतु विमलपूर्ण निःसपनस्वभावम् ॥१४॥
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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