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________________ २२४ समयमार कलश टीका होता है। परन कांतवादी जमा कहता है वैमा तो नहीं है जमा अनेकान्तवादी मानना वमी वग्नस्थित है। भावार्थ .. म्याद्वादी बम्न को माध मकना है । स्याद्वादी जीव के ज्ञान के मवंम्ब ने ममग्न परद्रय्य मे भिन्न अपने चैतन्य स्वरूप प्रदेश में सत्तारूप गे परिणमन किया है। उसने ज्ञानवस्त को महज ही जाना है और जानवस्नु में जय-जायक.म्प आवश्यक सबंध के कारण जेय को प्रतिबिम्बरूप माना है। भावार्थ ज्ञानमात्र जीव वग्नु परक्षेत्र को जाने यह तो महज है (म्वभाव है) परन्त अपने प्रदेश में है. पगय प्रदेगा मैं नही है.--सा मानता हुआ स्यादादी जीव वस्न का माध सकता है. अनुभव कर सकता है ।।८।। मया --कोऊ मठ कहे जेतो यरूप परमारण, तेको ज्ञान ना कर अधिक न पोर है। तिहं कल परक्षेत्र व्यापि परगम्यो माने, मापा न पिटाने ऐमी मिष्याग दौर है। जनमती कहे जीव सता परमारग ज्ञान, भयमों प्रध्यापक जगन सिर मौर है। जान की प्रभा में प्रतिबिंबित अनेक शेय, यपि तथापि थिति न्यारी-न्यारी ठौर है ।। शार्दूलविक्रीड़ित स्वक्षेत्रस्थितये पृथग्विधपरक्षेत्रस्थितार्थोज्झनातुच्छोमूर' पशुः प्रणश्यति चिदाकारात्सहापर्वमन् म्यादादो तु वसन स्वधामनि परक्षेत्र विवन्नास्तिता त्यतार्थोऽपि न तुच्छतामनुभवत्याकारकों परान् ॥६॥ कोई मिथ्यावृष्टि एकानयादी जीव ऐमा है जो वस्तु को द्रव्यरूप मानना है. पर्यायाप नहीं मानता इसलिए जब जान जेय वन्नु के प्रदेशों को जान रहा है. उस समय जान को अशुभ मानता है। कहता है जान का ऐसा हो स्वभाव है, वह जान की पर्याय है ऐसा नहीं मानता है। ज्यादादी इसका उत्तर देता है कि जानवस्तु अपने प्रदेशों में है-श्रय के प्रदेशों को जानती है, ऐसा उसका स्वभाव है, इसमें कोई अशुटपना नहीं है। एकान्तवादी मिथ्यादष्टि जीव तत्वज्ञान से शून्य होने के कारण तथा मानगोचर ज्ञेय के प्रदेशों में ज्ञान को सत्ता अथवा ज्ञान के प्रदेशों को मूल से नास्तिस्प
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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