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________________ शुद्धात्म-द्रव्य अधिकार १७५ १७५ श्लोक नास्ति सर्वोऽपि सम्बन्धः परद्रव्यात्मतत्वयोः । कर्तृकर्मत्वसम्बन्धाभावे तत्कर्तृता कुतः ॥८॥ इस प्रकार ज्ञानावरणादिरूप परद्रव्य पुद्गल के पिड का शुद्ध जीव कर्ता अथवा पुद्गल द्रव्य जीव के भावों का कर्ता क्यों होगा, अपितु नहीं होगा। संयोगी अवस्था के कारण जो जोव ज्ञानावरणादि कर्म का कर्ता दिखाई देता है सो दूसरे द्रव्य के साथ एक सम्बन्ध का अभाव हो जाए तो द्रव्य का स्वभाव ऐसा नही है यह स्पष्ट हो जाए। यद्यपि दो वस्तु एक क्षेत्रावगाह रूप हैं तथापि अपने-अपने स्वरूप को लिए हुए हैं....कोई द्रव्य किसी अन्य द्रव्य मे तन्मयरूप नहीं मिलता। ऐमा ही वस्तु का स्वरूप है इसलिए जीव पुद्गल का कर्ता नहीं है ।।८।। चोपाई-चेतन ग्रंक जीव लखि लोना । पुदगल कर्म प्रवेतन चीना ॥ वासी एक खेत के दोऊ । जपि तथापि मिले न कोऊ ॥ दोहा-निज निज भाव क्रिया सहिते, व्यापक व्याप्य न कोई। कर्ता पुद्गल कर्म को, जीव कहां सो होइ ॥८॥ वसंततिलका एकस्य वस्तुन इहान्यतरेण साई, सम्बन्ध एव सकलोऽपि यतो निषितः । तत्कर्तृकर्मघटनाऽस्ति न वस्तुमेदे, पश्यन्त्वकर्तृ मुनयश्च जनाः स्वतत्वं ॥६॥ जब जीव द्रव्य चेतना स्वरूप है और पुद्गलद्रव्य अवंतन स्वरूप है ऐसा भेद अनुभव में आ रहा है तो ऐसा व्यवहार कि जाव द्रव्य पुदगल पिंडरूप कर्म का कर्ता है, सर्वथा नहीं है। जो सम्यग्दृष्टि जीव हैं वे ऐमा अनुभव करें, ऐसा आस्वाद लें कि जीव का म्वरूप कर्ता नहीं है। क्योंकि शुद्ध जीव द्रव्य का पुदगल द्रव्य से अतीत-अनागत-वर्तमान किसी भी काल में एकत्वपना वर्जित है। भावार्थ-अनादि-निधन जो द्रव्य है वह तो जैसा है वैसा ही है, अन्य द्रव्य से नहीं मिलता है। इसलिए जीवद्रव्य पुद्गल कर्म का अकर्ता है ॥६॥
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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