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________________ मोक्ष-अधिकार १६१ चेतना जीव द्रव्य भी सधंगा नहीं और जो सधेगा तो पुदगल द्रव्य को भांति अचेतन सधेगा । चेतन नहो सधंगा तो दूसरा दोष यह होगा कि चेतना का अभाव होने पर जीव द्रव्य भी पुद्गल द्रव्य को भाति अचंतन है "मी प्रतीति उपजेगी। तीसरा दोष-चेतना गुण के अभाव होने पर सो प्रतीति उपजेगी कि चेतना गुण मात्र है जो जीव द्रव्य वह मूल से जीव द्रव्य नहीं है। यह तीनों दोष मोटे दोष हैं। इन दोषों के भय में ऐमा मानों कि चेतना में दर्शन और ज्ञान ऐसी दोनों नाम संज्ञाएँ विराजमान हैं। ऐसा अनुभव सम्यक्त्व है ॥४॥ सबंया-निराकार चेतना कहावे दरमन गुरण, साकार चेतना शुद्ध ज्ञान गुण सार है। खेतना प्रदत दोउ चेतन दरब माहि. सामान्य विशेष मत्ता हो को विस्तार है॥ कोउ कहे चेतना चिन्ह नहीं प्रातमा में, चेतना के नाश होत त्रिविधि विकार है। लागको नाश सत्ता नाश मूल वस्तु नाश, नाते जीव दरबको चेतना प्राधार है॥४॥ उपजाति एकश्चितश्चिन्मय एव भावो भावाः परे ये किल ते परेषाम् । ग्राह्यस्ततश्चिन्मय एव भावो भावाः परे मर्वत एव हेयाः ॥५॥ ___ जीव द्रव्य का चंतना मात्र स्वभाव है। निश्चय मे पमा ही है, अन्यथा नहीं है । वह चंतना मात्र भाव निर्विकल्प है, निर्भद है, मवंथा शुद्ध है । निश्चय ही शुद्ध चतन्य स्वरूप में नहीं मिलने वाले जो द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म सम्बन्धी परिणाम हैं वे मब पुद्गल कर्म के हैं, जीव के नहीं हैं। इसलिए शद चेतना मात्र जो स्वभाव है वह जीव का स्वरूप है, "मा अन्भव करना योग्य है और इससे न मिलने वाले जो द्रव्यकम, भाबकर्म, नोकर्म स्वभाव हैं वे सर्वथा प्रकार जीव के स्वरूप नहीं हैं, ऐसा अनुभव करना योग्य है । ऐसा अनुभव सम्यक्त्व है । सम्यक्त्वगुण मोक्ष का कारण है ।।५।। परिल्ल-जाके वेतन भाव चिदानंद सोड़ है। मोर भाव जोपरे सो और कोई है।
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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