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________________ ममयसार कलश टीका वर परिणमन जिम द्रव्य का है उमी द्रव्य में होता है किमी अन्य द्रव्य द्वारा ग्राद्य नहीं-- यह निश्चय है। जैसे मिट्टी घटरूप परिणमती है । घट की उपादान कारण मिट्टी में घटरूप परिणमन करने की शक्ति है। बाहरी निमित्त कुम्हार, चक्र, दण्ड इत्यादि कारण हैं। उसी प्रकार जो जीवद्रव्य अशुद्ध परिणामा-माह-गग-दंप इत्यादि - में परिणमन करता है उसका उपादान कारण है, जीव द्रव्य में अन्नगंभित विभावरूप परिणमन करने की शक्ति, निमिन कारण है दर्शनमोह और चारित्रमोह जो पुद्गल द्रव्य के पिण्ड जीव के प्रदेशों में एक क्षेत्रावगाह में कमंम्प बन्ध है उनका उदय । यद्यपि मोह कर्ममाप पुदगल पिर का उदय अपने निज द्रव्य में व्याप्य-व्यापकरूप है, वह जीव द्रव्य में व्याप्य-व्यापकरूप नहीं है । तथापि मोहकम के उदय होने पर जीव द्रव्य अपने विभाव परिणामम्प परिणमता है। माही वस्तु का म्वभाव है, उममें किमका चाग है। उदाहरणार्थ-जम म्फटिकर्माण की कांनि लाल, पीनी, काली इत्यादि अनेक छवियों में परिणमन करती है उमका उपादान कारण नी है म्फटिकर्माण में अन्नगंभित नाना रूपों में परिणमन करने की शक्ति और निमिन कारण है नाना रंगों के द्रव्य का मंयोग ।।१३॥ संबंया-जैसे नाना परम पुरी बनाइ दोजे हेठ, उज्जल विमल मरिण सूरज करति है। उज्जलता भासे जब वस्तुको विचार कीजे, पुरोको झलकसों वरण भांति-भांति है । से जीव दरबको पुद्गल निमितरूप, ताकी ममता मों मोह मदिरा की भांति है। भेद-जान दृष्टि सों स्वभाव साधि लीजे नहीं, सांची शुद्ध चेतना प्रवाचि सुखशांति है ॥१३॥ अनुष्टुप इति वस्तुस्वभावं स्वं ज्ञानी जानाति तेन सः । रागादोन्नात्मनः कुर्यान्नातो भवति कारकः ॥१४॥ सम्यग्दृष्टि जीव द्रव्य का स्वभाव पहले कहे अनुसार मानता है और अपने शुद्ध चैतन्य का आस्वादरूप अनुभव करता है । सम्यग्दृष्टि जीव ऐसा अनुभव नहीं करता कि राग-द्वेष-मोहरूप अशुद्ध परिणाम जीव
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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