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________________ समयसार कलश टोका परिणमन कर जाते हैं नया रागादि अशुद्ध परिणाम मिट जाते हैं । शान निविकल्प म्बम्प है, प्रगट ही चैतन्य स्वरूप है। इसीलिए मोक्ष का कारण है और जीव मम्यकदर्शन, मम्यज्ञान व सम्यक्चारित्र जो जीव के निज. स्वभाव नथा क्षायिक गुण हैं उनका प्रकट रूप ही भवन अर्थात् धारण करने वाला है । भावार्थ- यदि कोई यह शंका उठाए कि मोल मार्ग तो सम्यक. दगंन-जान-चारित्र तीनों के मिलने मे है तो फिर यहां ज्ञान मात्र को मोक्षमाग कमे कहा? उमका समाधान यह है कि शुद्ध स्वरूप ज्ञान में मम्यकदगंन और सम्यकरित्र भी सहज ही शामिल है। इसलिए इस कथन में कोई दोष नहीं बल्कि गुण है ॥१०॥ संबंया-मति के साधक को बाधक करम सब, प्रात्मा प्रनादि को करम माहि लक्ष्यो है। एते परि कहे जो कि पाप रो पुण्य भलो, सोई महामूढ़ मोम मारगसों क्यो है ॥ सम्यक स्वभाव लिए हिये में प्रगटोमान, ऊरष उमंगि चल्यो काहं न रुक्यो है। प्रारमो मो उज्वल बनारसी कहत प्राप, कारण स्वरूप के कारिज को दूक्यो है ॥१०॥ शार्दूलविक्रीडित यावत्पाकमुपैति कर्मविरतिनिस्य सम्यानमा कर्मज्ञानममुन्थ्योऽपि विहितस्तावन्न काचिमतिः । किन्त्यत्रापि समुल्लसत्यवशतो यत्कर्म बन्धाय तन्मोलाय स्थितमेकमेव परमं ज्ञानं विमुक्तं स्वतः ॥११॥ कोई माने कि मिथ्यादृष्टि का यतिपना तो क्रिया रूप है इसलिए बंध का कारण है परन्तु सम्यकदृष्टि जीव का यतिपना तो शुभक्रियारूप और मोक्ष का कारण है, जिसमे अनुभवज्ञान तथा दया, व्रत, तप संयमरूप क्रियाएं दोनों मिलकर शानावरणादि कर्म का क्षय करते है तो यह भ्रान्ति है और ऐसी प्रतीति कोई अज्ञानी जीव करते हैं। इसका समाधान इस प्रकार हैजितनी भी शुभ-अशुभ किया, बहिर्जल्प रूप विकल्प अथवा अन्तर्जल्प रूप विकल्प, या द्रव्य का विचाररूप अथवा शुद्ध स्वरूप का विचार इत्यादि समस्त विकल्प कर्म बन के कारण है। शिया का ऐसा ही समाव।
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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