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________________ समयमार कलग टीका चारित्र है, परन्न । अमन में) चारित्र नहीं है । इस प्रकार बाहरी या अंतरंग का अथवा सूक्ष्म म्यूलम्प कोई भी आचरण कर्म के भय का कारण नहीं, बन्ध का ही कारण है। विकल्पम्प आचग्ण आन्मद्रव्य मे भिन्न है, पुद्गल द्रव्य का स्वभाव और पुद्गल द्रव्य के उदय का कार्य है, जीव का स्वरूप नहीं है । भावार्थ- जो भी अन्तर्जल्प या वहिजंल्प, मूक्ष्म या स्थल क्रियाएं हैंचाहं वे शुभ हो अथवा अशुभ---विकल्पम्प आचरण होने में सभी कर्म के उदयरूप परिणमन है, जीव के गुट परिणमन नहीं है, बन्ध के ही कारण है ॥८॥ मोरठा--कर्म शुभाशुभ दोय, पुद्गलतिर विभावमल । इनसों मुक्ति न होय, नाही केवल पाइये ॥८॥ श्लोक मोक्षहेतुतिरोधानान्धत्वात्स्वयमेव च । मोमहेतुतिरोधायिभावत्वात्तन्निषिध्यते ॥६॥ कोई कहे कि क्रियारूप जो आचरणरूप चारित्र है वह करने योग्य नहीं है तो वर्जन योग्य भो नहीं है। इसका उनर यही है कि वर्जन योग्य है क्योंकि व्यवहार चारित्र होने से दुष्ट है, अनिष्ट है, घातक है और इसलिए विषय-कषाय को भांति क्रियारूप चारित्र निषिद्ध है । शुभ-अशुभ रूप करतूत त्यजनीय है-निषिद्ध है। मोक्ष अर्थात् निष्कम अवस्था का कारण जीव का शुद्धत्व परिणमन है उसके लिए करतृत (क्रिया) घातक होने से निषिद्ध है। स्वयं ही बंधरूप है। भावार्थ--जितने भी शुभ-अशुभ आचरण है वे समस्त कर्म के उदय से अशुरूप हैं इसलिए त्याज्य है, उपादेय नही हैं ।। मोक्ष अर्थात् सकलकर्मक्षय लक्षण परमात्मपद का सहज लक्षण जीव का शुद्ध चेतनास्प परि. गमन जो गुण है, कर्म उसका घातनशील है इसलिए कर्म (क्रिया) निषिद्ध है। भावार्थ-जैसे पानी का स्वरूप तो निर्मल है परन्तु कीचड़ मिलकर मेला होता है और पानी के शुम्पने का पात हो जाता है, वैसे ही जीव द्रव्य स्वभाव से स्वच्छ स्वरूप है. केवलनान-दर्शन-सुख-वीर्य रूप है। वह स्वच्छ पना विभावरूप अशुधबेतना जिसका लक्षण है उस मिथ्यात्व तथा विषय. कषायल्प परिणाम से मिट गया है । अव परिणाम का स्वभाव ऐसा ही है कि वह शुपने को मिटा देता है, इसीलिए कर्म (त्रिया) निषिट है। मानों
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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