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________________ २५६ मूल संस्कृत मूल संस्कृत - मूल संस्कृत न य बुग्गाहियं नय कुप्पे संजम कहं कहेज्जा निहुइ दिए पसंते । ध्रुवजोगजुत्त उवसंते अविहेडए जे स भिक्खू ॥ न च वैग्रहिकों कथां कथयेन्न च कुप्येन्निभृतेन्द्रियः प्रशान्तः । संयमत्र, वयोगयुक्तः उपशान्तोऽविहेडको यः स भिक्षुः ॥ जो (११) ह गामकंटए पहारतज्जणा जो य । संपहासे सम सुहदुक्खसहे य जे स भिक्ख 11 यः सहते खलु ग्रामकण्टकान् प्रहार तर्जनाश्च । आक्रोश भय भैरव - शब्द संप्रहासान् समसुख-दुःख सहश्च यः स भिनः ॥ : (१२) पडिवज्जिया मसाणे सहइ अक्कोस भय भैरव सद्द · - (१०) पडिमं .. नो भायए भय-भेरवाई दिस्स । 9 विविह गुण तवोरए य निच्च प्रतिमां न सरीरं चाभिकखई जे स भिक्खू ॥ विविध प्रतिपद्य श्मशाने. नो विमेति भय-भैरवानि दृष्ट्वा ! गुणतपोरतश्च नित्यं न शरीरं चाभिकांक्षति यः स भिक्षुः । दशर्नकालिकसूत्र
SR No.010809
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages335
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size13 MB
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