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________________ सप्तम वाक्यशुद्धि अध्ययन १५५ (अवस्था, देश, ऐश्वर्य आदि की अपेक्षा से) गुण-दोष का विचार कर एकवार या आवश्यक हो तो अनेकवार उन्हें उनके नाम या गोत्र से आमंत्रित करे-सम्बोधन करे और सन्मान-पूर्ण प्रिय वचन से बुलावे । (१८-१६-२०) कवित्तबाबा परदादा पिता चाचा मामा भागिनेय, पुत्र पौत्र आदि नाम संबोधन कोजे ना। हे भो हल अन्न भट्ट स्वामी गोमी होल गोल. हे वसुल आदि नर-संबोधन दीजे ना। नामतें पुकारे वाकों, तथा नर-गोत्र हो त, जथाजोग बोलवे में दूसन गहीजे ना। देखि गुन दोस एक वार तथा अनेक वार, बोलिये विचार अविचार ते वहीजे ना ।। अर्थ-हे आर्यक (हे दादा, हे नाना), हे प्रार्यक (हे परदादा, हे परनाना), हे पिता, हे चाचा, हे मामा, हे भानजा. हे पुत्र, हे पोता, हे हल (मित्र) हे अन्न, हे भट्ट, हे स्वामिन्, हो गोमिन्, हे होल, हे गोल, हे वृषल, इस प्रकार से बोलकर पुरुष को सम्बोधित न करे । किन्तु यथायोग्य (अवस्था, देश, ऐश्वर्य आदि की अपेक्षा से) गुण-दोष का विचार कर एक वार या अनेक वार उन्हें नाम से या गोत्र से सम्बोधित कर सम्मानपूर्ण प्रिय वचन से बुलावे । (२१) बोहा- पचेन्द्रिय प्रानीनिमें 'यह नर' वा 'यह नारि'। जो लगि यह नहिं जानिए. तो लगि'जाति' उचारि॥ अर्थ-पंचेन्द्रिय प्राणियों के विषय में जब तक यह स्त्री है, अथवा यह पुरुष है, ऐसा निश्चयपूर्वक न जान लेवे, तब तक उनकी 'जाति' का उल्लेख करके ही बोले कि यह गोजाति का पशु है, यह अश्वजाति का पशु है ।
SR No.010809
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages335
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size13 MB
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