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________________ ચ तत्वार्थसूत्र ल्यांणकाना इस नोकपरलोकमै निद्यपणदेखना भावनां कर | हँसाकरनेवाला नित्यही उद्देगरु परदेदै अर निरंतरवेरानुबंध होई है। रसलोकमैवधबंधक्केशादिकनैं प्राप्तदो ऽहै। प्ररपरलोक मैं प्रथ नगतिनैंप्राप्तदोइदै निद्य्ोऽहै। तातै हिंसातै बिरक्त होइ त्याग करना काकल्पासही सत्यवादी समस्तके अप्रतीति योग्य हो को ऊपत्ति तिनही करैहै। इसलो कहीं में तिचिद सर्वस्वहरणादि क्प्राप्तहोइहै। जिनसेंगूचकदै तिनत्तेवडावेखंधैहै॥ प्ररपरलोकमैनिंद्य ]तिकूंप्राप्तदोऽहै। तार्ते-असत्यवचनतै विरक्त दोश त्याग कर नाही जीव का ल्पाणंदे तैसे टीपर5व्यहरनेवाला चोर समस्त कैपीडा करने वाला होइदै लोकमेदीनानां धानवधवेधनहस्तपादिनांशिकार्डष्टकादिस्वर्वस्वा हरणादिकर्तेने प्राप्त होइहे - अरपरलोकमै प्रशुनगति होई हो। अरमहा J
SR No.010804
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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