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________________ सम्पत्त होई || अरबेदरहितनिकैऊपशमिक क्षायिकदोरही हो है| कषायके अनुवादकरिच्यारूं कु पाथनिमैतीं सम्पत्कहोईहै। रहितनिकै परमकक्षायिक दोइही सम्युक्त होइदा ज्ञानके अनुवाद रिमतिश्रुतःश्रवधिमन:पर्ययच्यारिज्ञाननिदिषैतीनसम्पर्क है कि नविषैज्ञायिक सम्पत्कही है। संयम के अनुवाद करि सामायिकच्छेदो * स्थान दोय संयम विषैती नूंही सम्पत्त हो रहै।। परिहारविश्रुद्धसंयम उपशमेक सम्पक्त्तविनादोय सम्पत्त है। सूक्ष्म सांपराययथाख्यातसेय विपशमिक सम्पत्कञ्प्ररक्षायिक सम्पत्त दोषदे ॥ संयतासंयतविषै नूसम्पन्क है असंयतविषै हतीनू सेम्पत्कदै ॥ दर्शनके अनुवादक सुदर्शनचतुदर्शन अवधिदर्शनविषैतीनूसम्पत्क है । केवलदर्श वर्षे एक ताथिक सम्पत्कहै। ले पाके अनुवादकरिच्चइंलेश्पानिमैत्री तत्वार्थ सूत्र छ 11801
SR No.010804
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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