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________________ मात्सर्य दिणावऊरिकोऊज्ञानान्पास करना होइ तिसंभविघ्नकरिंद पुस्तकत्तथापढावनेवाला का तथा स्थानका वियोगकरिदेसाअंतराय है वरिपरकरिप्रकाशनकीयाज्ञानकुंवनिकरनासायासादन है बहु रिपरास्त ज्ञानकुंडूषण लगाव नोसोऽपघातहै ॥ सोएप्रदोष॥१॥ निवः. शामातसयशन राय॥ध॥ श्रसादनाय॥ उय्घातः ६॥ इनिकरि ज्ञानावरण अरदर्शनावरणकर्मको आश्रवहोइ है। प्रोररूपाचार्यवपाध्या यतेप्रतिकूलत्तारअकालमै अध्ययनश्रधानकाअनाव विद्याकेअन्य समं आलस्पतथा अनादरतैस्त्र का अर्थकाश्रवणधर्म तीर्थका लोपव श्रुतीपणांकागर्वतथामिथ्या उपदेश दिनांत था व श्रुतीनिका अपमान करना सत्यपलापउत्सूत्रवादशास्त्रनिकविचनांहिमादिकमै प्रवर्तना तिसमस्तज्ञानावर्णकर्म के श्राश्रवका कारण है। वरिपरके देखने में मात्स
SR No.010804
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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