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________________ प ॥ सूत्रं ॥ कायवाङ्मनः कर्मयोगः॥॥॥कायवचनमनकी क्रिया सोयोगहै. सूत्रांस आश्रयः॥ ॥जोमनवच्चनकाय का योग सो आश्रवदे। जैसे सरोवर केजलआवनें के छारतै सेयेमनवचन कायके योगकर्म श्रावनके द्वार है।। ॥सूत्रांशुनः पुष्पस्पाश्रुनः पापस्पश्रनयोगतैपुष्पकाश्राश्रवहोयहै।। अश्रुनयोगत्ते पाप का आश्रवहोइहै। तिनिमेंप्राणी निकाघात प्रदत्त काय इएमेथुन सेवनइत्यादिकत्तोःश्रश्रन काययोग है। अरकर्कसकवोर निंद्य असत्पत्यादिवचन कहनीसोप्रभवचनयोगरै॥ परजीवनिका घातई षदित्यादिचित्तवन करना सो॰अश्रुन मनोयोगहै।।तर हिंसादिकपापरहि तकायकीप्रवृत्तिसोश्रुनकाययोगहै। हितमित सूत्रकै अनुसार स्वपरका उपप्र वचन बोलना सोनवचनयोगदे॥ अर्हतादिका निकीन क्तिधर्मध्याना दिकशुन मनोयोग है। सूत्रं ॥ कषाया कष्याः सांपरायके यपिथयेोः ॥ ॥
SR No.010804
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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