SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवादिक समस्तश्वानरसमस्तव्य निकी नूतन विष्पत्वर्तमान त्रिकालव ती अनंत पर्याय निचिषेनाननेका केवलज्ञानका नियमहे ॥ सूत्रं ॥एकादीनि भाज्या नियुगपदेकस्मिन्नीवतुः ॥ एकश्रात्मा र्विषैयुगपत् एक कूंच्या दिलेय च्या रिपर्यत ज्ञान होय है। कहो यत दिकेवलज्ञान होया दोय होइन १ मतिज्ञान=प्ररश्रुतज्ञान होय है। तीनहोयतहामतिश्रुतःप्रवधिहोय॥वामनिर श्रुतमन:पर्ययहोशाच्यारिहोयतदांमतिश्रुक्तप्रवधिमन:पर्यय होइ है। सूत्रो प्रतिश्रुतावध्योर्विपर्ययमतिष्ठत अवधिएतीनज्ञानवियर्थयक हि एमिथ्यानी होइहै जैसकडवी व मिश्राप्तड वाडुग्धकटुक होइ है। तैसें मि थ्याश्रशनीका ज्ञानहू मिथ्या होम है।। सूत्रं ॥ समतोरविशेषाद्यच्बोपलब्धेरु न्मत्तवश ३ः सत्यसन्का अविशेष करिकैजो इच्छा करिखन्तकी नाईग्रहण करनेते ज्ञानकै विपर्ययपणा हो इहै॥ सूत्रं निगम संग्रह व्यवहारऋतुसूत्रश
SR No.010804
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy