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________________ ಕ तत्वार्थसूत्र १७|येदोयसेअग्रासन दरुप ज्ञानकेने अर्थक हिइंद्रियनिकेविषय यावे-प्रतिपदार्थकें है। ली| व्यंजनस्यविग्रहः॥ १८ ॥ व्यंजन तो अप्रगटश ट्रादिकत्तिनिका अवग्रही होय ।ईटा अवाय धारणानदी होय ॥स नवकरनिशियान्यो र व्यंजन अप्रगटताकाश्रवग्रनेकसर मन नही होइ है। मारिदियनितेंही होय है॥ सूत्रं ॥ श्रुतं मतिपूर्वान कद्वादशभेदे ॥ श्रुतज्ञान होय है। सो मतिज्ञानपूर्वक होय है। सूत्र । नवप्रत्ययोवधिर्देवनार काएं||२२|| देवनिकेत थानोर किनिक अवधि ज्ञानंहै॥ ताकुंभवक दिएदेव नारक की पर्यायी का कार एरि । जेदिव कीअरनारककीपर्याय्धारैगाता अवधिज्ञानावरणका क्षयोपशम हो यनियमते प्रवधिज्ञानग्प्तेही गा/मिथ्यादृष्टी निकै विनंग। अरसम्पाह टी निकै सम्पक अवधि होय है॥ सूत्रं ॥ क्षयोपरामनिमितः षट्विकल्यः दोय अनेक बारे भेद हैं X ICI
SR No.010804
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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