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________________ तत्वार्थमूत्र रूपन दिएनमनिके वेष्टन अनाराच कहिएबमय होइ सोव ६६ षमनाए बसंहनन है || -रता में हाङ अरसंधु निकेकी नानोमय होइ अरनसनिकेबंधनवज्रमयन ही दो मोव नाराचसंहनन हो शाय विशेषणरहित नाराचक दिएकी नातिन करिकी नितदार निकी होइसो नारा व संहनन है। वह रिजामै हाड निकी संधि केकीले आधे होय सोएकतरफ हूजीतर फनही होइ सोनाराचसंद है। वह जिमिदार निकी संधिछोटे कीनेनिक रिस दिन होइसो कीलक संहनन है। वरि जामै दाइ निकी संधिनमें अंतर होई॥] चौगिरदवडी बोटी लिपटी होयमासा दिकनितैः प्राच्छादित होइसोप्रसंप्राप्पाटिक सेहन है। मोसन वनिक हो रहै। देवनार की एक प्रिय निकै हाडंही नहीत सिंहनन कैसे होइ || बहुरि बिसके उदय शरीरकै साइडिने सो स्पर्शनाम ॥६॥
SR No.010804
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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