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________________ अर्थतति अधिक का संग्रह करना सोउपभोगपरिनोगानर्थच्च नाम अत्ती चार देव पंचप्रती चार अनर्थदंडवी रत्तिनामध्नकेदै॥ सूत्रं/योगदुः प्रणिधा नानादरस्मत्यनुपस्थानानि ॥ नूनू)}योगजेमनवचनकाय के तीनतिन का पोटीप्रवृतिरूप करना तीन अती चारतोए:-प्रखत्सादर दिनश्रनादरतैक नांस अनादरञती चारहै॥] [अरपाठकातथा क्रियाकानूलिजानासो मूल्य अनुपस्थान नाम अतीचा रहे। एपंचप्रतीचा र सामायिकके है॥ सूत्रं अपत्यवे चिताप्रमार्चितोत्सर्गादानसंस्तरोपक्रमणानादरस्मृत्यनुपस्थानानिधा कहानी वह किनही सेविना देख्या तथा कोमलउपकर एतैविना काडना भूमिविषमलादिकशरीरादिकका क्षेपांतथा उपकरणादिककायद नातथाविचावणां सोवनातीन अती चारतो एनएसक्तधादिपीडित रकरनां ॥ प्राक्पकादिक्रियामै उत्साहनदी करना। में
SR No.010804
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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