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________________ त मभ्युद्यतानां, न मनसि न शरीरे दुःख मुत्पादयन्ति ॥ १॥ आचा० पृथ्वीनां तळमां शयन छे तुच्छ भिक्षार्नु भोजन, अथवा कुदरती लोकर्नु अपमान, अथवा नीच पुरुपोनां महेणां सांभळवां; आ- सूत्रम् हटलं छता उत्तम साधुओ मोटाफळ (मोक्षने) माटे निरंतर उद्यम करनारा छे. तेमने मनमां के, शरीरमा पूर्वे कहेलां कृत्य कंइपण & ॥३१६॥ दुःख उपजावी शकतां नथी. (मोक्षार्थी-साधु तेने गणकारता नथी) ॥३१६॥ तणसंथारनिसण्णोऽवि, मुणिवरो भट्ट रागमयमोहो। जं पावइ मुतिसुहं, तं कत्तो चकवट्टीवि? ॥२॥" घासना संथारे बेठेलो जे मुनि छे, अने तेणे राग-मद, मोह त्यज्यां छे, तेवो मुनिज मुक्ति-सुख पामे छे, तेवू सुख चक्रवर्ती पण क्याथी पामे! अहीं चारित्र मोहनीयकर्मना क्षय उपशमथी जे पुरुपने चारित्र मळ्यु छे, तेने पाछो मोहनो उदय थतां घेर जवानी इच्छावालाने आते सूत्रवडे उपदेश अपाय छे, अने ते संबंधमां जे कारणोथी संयममाथी भ्रष्ट थवाय छे, ते हेतुओने नियुक्तिकार कहे छे. बिइउद्देसे अदढो उ, संजमे कोइ हुज्ज अरईए। अन्नाणकम्मलोभा, इएहिं अज्झत्थ दोसेहिं ॥ १९७ ॥5 (पहेला उद्देशामां नियुक्तिनी गाथा घणी कही; अने आ उद्देशामां आ एकज छे, तेथी मंदबुद्धिवाळा शिष्यने आरेका (शंका) त थाय के, आ एक पण पहेला उद्देशानी हशे; ते शंका दूर करवा बीजो उद्देशो एवं गाथामां लखवू पडयुं छे) बीजा उद्देशामां वताव्यु ले के, कोइ कंडरीक जेवा साधुने १७ प्रकारना संयममां मोहनीयना उदयथी अरति थाय; अने तेथी संयममां ढीलापणुं थाय; अने ते ५. मोहनो उदय मनमा रहेला जे दोषो छे, तेनाथी थाय छे, ते दोषो अज्ञान, लोभ, विगेरे छे. OGAREKARENCE REC-STRUCTS
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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