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________________ R 9CC आचा ECRC p ॥१०३५॥ ॥१०३५॥ n --- - (मू०१५१)त्तिबेमि वत्थेसणा.समना ।।.२-१-५-२' . ते भिक्षु रंगवाला वस्त्र कारण विशेषथी लीधां होप, तो चोर विगेरेना भयथी रंग विनानां न बनावे, उत्सर्गथी तो एज अधिकार छे के तेवां बस्त्र लेवांज नहि अने लीधां होय तो. तेने. रंग उतरवाप्रयत्न न करवो, अथवा वर्ण (खराब रंगनां) होय तो सारा रंगवाळां बनाववां नहि. अथवा आ सादा वस्त्रने बदले सारु मेळवीश, एवी इच्छाथी बीजाने आपी देवु नहि, तेम प्रामित्य करवु नहि, तथा वस्त्रथी वस्त्रनु परिणाम करवू नहि, तेम बीजा पासे जइने एवं बोलवू नहि, के हे आयुष्यमन् ! आ मारुं वस्त्र ओढवा पहेरवाने तुं इच्छे छे ? अथवा सारु होय तो टुकडा करीने फेंको देवू नहि, के जेथी मारु वस्त्र वीजो गृहस्थ एम जाणे के ए खराब हतुं (माटे फेकी दीधुं छे) वळी मार्गमां चोरना भयथी वस्त्रना रक्षण माटे उन्मार्गे डरीने न जाय तथा दोडवानी उत्सुकता राखवा विना इर्यासमिति | पाळतो जाय अने गाम गाम विहार करे. वळी रस्तामा जतां उजड मेदान जाणे, ज्या वस्त्र लुटनारा बहु चोरो वसता होय, तो तेमना डरथी पण उन्मार्गे न जाय, पण यतनाथी विहार करे, कदाच ते रस्ते जतां चोरो आवे. अने वस्त्र मागे, अथवा लुटी ले, तो शांतिथी उपदेश आपको. न माने तो बाजुए परठवी देवु अने फरी उपदेश देतां आपे तो लेवं, पण कोइने कहेवू नहि, तेम चोरने पकडवा नहि, वगेरे वर्षा पूर्व माफक जाणवु पांचमुं अध्ययन समाप्त थयुं. - - - - -- --
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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