SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ CO सूत्रम् ॥२९८॥ -4 बाळक पणामां पिता रक्षा करे छे. यौवनअवस्थामां धणी वचावे छे. अने वृद्धावस्थामां दिकरा पाळे छे, पण स्त्रीने कोइपण 8 आचा० अवस्थामां स्वतंत्रता आपवी योग्य नथी. __अथवा बीजी रीते त्रण अवस्थाओ छे. (१) बाळ (२) मध्य अने (३) वृद्धत्व एम छे. का छे के॥२९८॥ आषोडशाद्भवेहालो, यावतक्षीरान्नवर्तकः। मध्यमः सप्तति यावतपरतो वृद्ध उच्यते ॥१॥ दुध अने अन्न खानार (जन्मथी लइने) सोळ वर्ष सुधी बाळक कहेवो, अने सीत्तेर वर्ष सुधी मध्यम अने त्यारपछी वृद्ध क६ हेवो, आ बधी अवस्थामां पण जे उपचयवाली (बळ वधे त्यां सुधी) अवस्था छोडीने आगळ गएलो अतिक्रांत वयवालो जाणवो. ("च" समुच्चयना अर्थमां छे.) ____ अहींआं कान, चक्षु, नाक, जीभ, अने स्पर्श इंद्रियोना अस्त (नाश) पामेला समस्त ज्ञाननी वात फक्त न लेवी पण तेनी साथे । 15 शरीरनी बीजी शक्तिओ पण नाश थतां मूढपणुं आवे छे. (आ करवू आ न कर. एवो विवेक नष्ठ थाय छे.) तेथी वय उलंघतां (शरीरनी शक्ति ओछी थतां) विचारीने ते प्राणी (संसारमा मोह राखनारो पुरुष) निश्चयथी वधारे मुट्ठपणुं पामे छे. (पण धर्म आराधतो नथी) तेथीज मूळ सूत्रमा का छे के-"तओस" विगेरे अटेले धोळा वाळ जोइने अथवा शरीरपर करोचलीपडेली जोइने पोते हुँबुड्डो थयो एम जाणीवधारे खेद करे छे; अने तेथी मुट्ठताप्राप्त करेछे |" अथवा ते संसारी जीवने कान विगेरेजी शक्ति ओछी थतां तेने मूढता आवे छे; ए प्रमाणे वृद्धावस्थामां ते मृढ भावने पामीने 4-4AC-%-540 RECOGER
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy