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________________ आचा० CROSAGACCA ॥९८५॥ 18/॥९८५॥ गयेलां होय, अने ब्राह्मण श्रमण विगेरे मागण न आवेला होय, अथवा थोडा बखतमा आववाना न होय तो मागसर शुद १५8| सुधी त्यां रहेQ. त्यारपछी गमे तेम होय तोपण 'त्यां रहेवु नहि, पण जो दृष्टि न होय, कादव न होय, मार्ग इंडां विनानो होय, सूत्रम् श्रमण ब्राह्मण आव्या होय, आववाना होय, तो कार्तिको पुर्णिमा पछी तुर्त विहार करवो. हवे मार्गनी यतना कहे छे से भिक्खू वा० गामणुगाम दुइज्जमाणे पुरओ जुगमायाए पेहमाणे दहण तसे पाणे उद्धट्ट पादं रीइज्जा साह पायं रीइज्जावितिरिच्छे वा कट्ट पायं रीइजा, सई परकमे संजयामेव परिकमिज्जा नो उज्जुयं गच्छि जा, तओ संजियामेव गामणुगाम दुइज्जिज्जा ।। से भिक्खू वा० गामा० दुइज्जमाणे अंतरा से पाणाणि वा बी० हरि० उदए वा मट्टिा वा अविद्वत्थे सइ परकप्रे-जावं नो उज्जुयं गच्छिज्जा, तओ संजया० गामा० दृइन्जिज्जा ॥ (मू० ११४) . ते भिक्षु बीजे गाम जतां मोढा आगळ युगमात्र (चार हाथ प्रमाण) गाडाना उद्धिं (घसारा) ना आझारे भूभाग (जमीन)। देखतो चाले, त्यां मार्गमां त्रस जीवो जे पतंग विगेरे छे, ते पगने अडकीने नीकळे, अथवा पगना तळीयां नीचे अडकीने नीकळे तो ते जीवोनी रक्षा खातर शरीरमा शक्ति 'होय त्यां सुधी वीजे मार्गे जर्बु, पण बीजो रस्तों के जवानी शक्ति न होय, तो ते रस्ते जतां| ज्यारे तेवां जंतुओ पग पासे आवे त्यारे ते त्यां पग संभाळीने मुकवो के ते चगदाइ न जाय, एटले ज्यारे सामे आवे त्यारे तेने & पग पग.साथे अथडावा देवां नहीं, पण जो पग नीचे दबाइ जायं तेम होयतो नीचे देखीने ते जग्याए पग न मुकवा, अथवा पगनी | एडी मुकीने चालवू, अथवा पग वांको करीने चालवू, आंप्रमाणे एक गामथी बीजे गाम जीव जंतुनी रक्षा करतां जq. वळी साधुने एक गामथी बीजे गाम जतां मार्गमां नाना जीव जंतु वीज हरियाणी (लीळं घास) पाणी, माटी अथवा रस्तो| - K
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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