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________________ सूत्रम् 8 केवो छे? एनो मालिक कोण छे? विगेरे पूछीने उपाश्रयने याचे. हवे जे. घरनो स्वामी छे, अथवा घरना मालिके तेनी रक्षा माटे जेने सोंप्यु होय, तेनी पासे उपाश्रयनी याचना करे, ते आ| आचा० * प्रमाणे हे आयुष्मन्! तारी इच्छाथी तुं आज्ञा आपे तो अमुक दिवस आटला भागमां अमे रही . त्यारे ते वखते गृहस्थ कहे, के है तमने केटला दिवस जरुर पडशे? त्यारे साधुएं कहे, के शीयाळे, उनाळे खास कारण विना एक मास अने चोमासु होय तो चार मासनी जरूर छे, एम याचना करवी, त्यारे कदाच गृहस्थ कहे, के मारे तेटलो काळ अहीं रहे, नथी, अथवा तेटलो काळ वसति अपाय तेम नथी, त्यारे साधुए ते मकान लेवा, कांइ खास कारण होय तो कहेवू के ज्यां सुधी आप रहो त्यां सुधी अथवा आपना कवजामां होय त्यां सुधी अमे एमां रहीशुं, त्यार पछी अमे विहार करी जहशुं, पण गृहस्थ पूछे, के साधुनी संख्या केटली छे? तो/2 ६ कहेg, के अमारा आचार्य समुद्र जेवा छे, तेथी परिमाण नकी नथी, कारण के कार्यना अर्थीओ केटलाक आवे, अने भणवा विगे-18 रेतुं कृत्य थइ रहेतां केटलाक जाय छे, तेथी जेटला हाजर हशे, तेटला माटे याचना छे, अर्थात् साधुए घरधणी साथे साधुन परिमाण नकी न करवू, वळी से भिक्खू वा० जस्सुवस्सए सबसिज्जा तस्स पुवामेव नामगुत्तं जाणिज्जा, तो पच्छा तस्स गिहे निमंतेमाणस्स वा अनिमंतेमाणस्स वा असणं वा ४ अफासुयं जाव नो पडिगाहेज्जा ॥ (मु०९०) ते साधु जेमा घरमां निवास करे तेनुं प्रथम नाम गोत्र जाणी ले, त्यार पछी तेना घरमां निमंत्रणा करे, अथवा न करे तो पण चारे प्रकारनो अमामुक आहार ग्रहण न करे (नाम-गोत्र पूछ्वानुं कारण ए छे के आवेला साधु परोणाओ सुखेथी घर पूछता आवी शके.)15 SROGRECR-COLORROREASTI .ि . .
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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