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________________ आचा० ॥९१४॥ (५) वासणमाथी तुष विग होय, (३) पृथ्वीकाय विग/॥९१४॥ । विगेरेयी जे आप, 5 त्रसकायतुं सूत्र पण जाणवू, अहीं ( वनस्पतिकायमा रहेलुं ) आ सूत्र वडे निक्षिप्त नामनो एषणादोष लेनार आपनार बनेनो भेगो |5| बताव्यो, तेज प्रमाणे बीजा पण एषणादोष यथासंभव सूत्रोमां योजवा ते आ प्रमाणे छे. सूत्रमू संकीय मक्खिय निक्खित पिहिन साहरियदा यगुम्मीसे; अपरिणय लित्त छड्डिय, एसण दोसा दस हवंति ॥१॥ (१) अधाकर्म विगेरेथी शंकित आहार विगेरे न लेवू, (२) पाणी विगेरेथी मृक्षित [लींपायेल] होय, (३) पृथ्वीकाय विगेरेमा स्थापन करेलं होय, (४) बीजोरा विगेरे फळथी ढांकेलं होय (५) वासणमाथी तुष विगेरे न आपवा योग वस्तु बीजी र सचित्त पृथ्वी विगेरे उपर नांखीने ते वासण विगेरेथी जे आपे, ते संहृत दोष छे. (६) बाल वृद्ध विगेरे दान देनार 'शुद्धि तथा के र शक्ति विनानो होय, (७) सचित्त विगेरे पदार्थथी मिश्रित वस्तु होय, (८) देवनी वास्तु बरोबर अचित्त न थइ होय, अथवा देनार लेनारना भावविनानी होय ते अपरिणत कहेवाय, (९) चरवी विगेरे निदानीक पदार्थथी लिप्त होय (१०) छांटा पाडती वहोरावे.8 आ दस दोष एसणाना कह्या, ते टाळवा जोइए. हवे पीवाना आश्रयी कहे छे• से भिक्खू वा २ से जं पुण पाणगजायं जाणिज्जा, तंजहा-उस्सेइमं वा १ संसेइमं वा २ चाउलोदगं वा ३ अन्नयरं वा तहप्पगारं पाणगजायं अहुणाधोयं अणं विलंअव्वुकंतं अपरिणयं अविद्धत्थं अफासुयं जाव नो पडिगाहिज्जा। अह पुण एवं जणिज्जा चिराधोयं अंविलं वुक्तं परिणयं विद्वत्थं फासुयं पडिगाहिज्ज । से भिक्खू वा० से जंपुण पाणगजायं जाणिज्जा, तं जहा-तिलोदगं वा ४ तुसोदगं वा ५ जवोदगं वा ६ आयाम वा ७ सोवीर वा ८ सुद्धवियर्ड वा ९ अन्नयरं वा तह पगारं वा पाणगजायं पुवामेव आलोइज्जा-आउसोत्ति वा भइणित्ति वा! दाहिसि मे इचो अन्नयरं पाणग USESSASSACROSSESSIEन
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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