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________________ आचा ॥८८६॥ फरफरॐSHASH ते वावो कोपायमान थतां झगडी करशे. पछी ते रीसमा आवी ने दंड (लाकडी) थी करीना गोटला विगेरेथी मुक्काथी माटीना ढेफाथी कपाल घडाना ठीकरा] थी साधुने घायल करशे, अथवा ठंडा पाणीथी सिंचशे, धुळथी कपडा बगाडशे, आ दोषो तो जगाना संकोचने लीधे थाय छे, पण ओछी रसोइने लीधे आवा दोपो थाय छे. अशुद्ध आहार खावानो वखत आवशे, कारण के थोडं रांधेलुं अने भिक्षु वधारे होय छे, त्यारे घरधणी एम समजे के मारुं नाम सांभळीने आ लोको आव्या छे, माटे मारे कोइपण रीते पण तेमने आप जोइए, एवं विचारीने साधुने रांधीने पण आपशे, तेथी दोषित आहार खावानो प्रसंग आवे, अथवा कोइ वखत दानदेनारने वीजा बावा विगेरेने आपवानी इच्छा होय अने वचमां साधु आवीने ले, तेथी घरधणीने तथा बावा विगेरेने खोटं लागे, माटे आवा दोपोने जाणीने उत्तम साधुए आवी संखडिमां घणा लोको भरायेला होय, त्यां भोजननी तंगीने लीधे अथवा : | धक्कामुक्कीना कारणे संखडिनी बुद्धिए त्यां जवु नहि, हवे सामान्यथी पिंडनी शंकाने आश्रयी कहें छे. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा असणं वा ४ एसणिज्जे सिया अणेसणिज्जे सिया वितिगिंछसमावन्नेण अप्पाणेण असमाहडाए लेसाए तहण्पगारं असणं वा ४ लाभे संते नो पडिगाहिज्जा ॥ (सू०१८] ते भिक्षु गृहस्थना घरमां गये लो एपणीय आहरने पण शंकावाडं जाणे, के आ उद्गमादि दोपोथी दुष्ट छे. तो साधुए तेवी | शंका थया पछी तेवं लेबु नहि, कारणके "जं संके तं समावज्जे," ज्यां शंका थाय त्यां ते भोजन लेवु नहि, (आ सूत्रमा एपणीय | अथवा अनेषणीय चार प्रकारनो आहार होय, पण पोताने केटलांक कारणोथी मालुम पडे के ते उद्गम दोष विगेरेथी युक्त छे. आवी ज्यां पोतानी लेश्या थइ तो उत्तम साधुए ते लेवु नहि.) हवे गच्छमांथी नीळेकला साधुओने आश्रयी सूत्र कहे छे. DARSHASHA
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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