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________________ आचा० ૮૮જા | ॥८८४॥ कोइ एकांत स्थळमां जइने स्त्रीसंग अथवा कुचेष्टानी विज्ञप्ति करे, अने दुराचारथी भ्रष्ट थवा वखत आवे, माटे संखडिमां जवु अ-18 योग्य छे, एम मानीने संखडि (जमण) मां जवु नहि, कारण के आ जमणो कर्मोपादननां कारणो छे, तेमां कर्म दरेक क्षणे एकठां थाय छे, एटले त्यां जवाथी बीजां पण अशुभ कर्मबंधनां कारणो मळी आवे छे, उपर बतावेला त्यां आलोक-संबंधी रोगना दुराचारना अपायो छे. तेमज परलोक संबंधी दुर्गतिगमनना प्रत्यवायो छे, माटे संखडीने उद्देशीने त्यां पहेलां के पठी साधुए जवू नहीं. से भिक्खू वा २ अन्नयरिं संखर्डि सुच्चा निसम्म संपहावइ उस्सुयभूएण अप्पाणेणं, धुवा संखडी, नो संचाएइनत्य इयरेयरेहिं कुलेहिं सामुदाणियं एसियं वेसियं पिंडवायं पडिग्गाहित्ता आहारं आहारित्तए, माइट्टाणं संफासे, नो एवं करिज्जा ॥ से तत्थ कालेण अणुपविसित्ता तत्थियरेयरेहिं कुलेहिं सामुदाणियं एसियं वेसियं पिंडवायं पडिगाहित्ता आहारं आहारिजा ॥ [मू० १६] ते भिक्षु आगळ-पाछळनी कोइपण 'संखडी' वीजा पासे के जाते सांभळीने निश्चय करे के त्यां अवश्ये जमण छे, तो त्यां उत्सुकपणाथी अवश्य दोडे के मने अद्भूत भोजन मळशे. तो त्यां गया पछी जुदा जुदा घरोथी समुदायनी एपणीय गोचरी आधाकर्मादि दोष रहित फक्तं रजोदरण विगेरेना वेपथी मळे ते उत्पादन दोष रहित लेवी, ते तेनाथी बनी शके नहि, अने कपट पण करे, प्र०-केवी रीते ? पोते गुरु पासेथी 'प्रतिज्ञा' करीने जाय, के जुदा जुदा घेरेथी गोचरी लइश, पण उपर बतावेली रीते तेम लेवा शक्तिवान न थाय. अने संखडिमांज जाय. माटे आलोक परलोकना अपायोना भयने जाणीने संखडि तरफ न जाय. केवी रीते करे. ते कहे छे. ते भिक्षु कारण विशेषे त्यां जाय तो पण योग्य समये जुदा जुदा घरोमां जइने सामुदायिक
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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