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दशवकालिक सूत्रमा जे विषय कहेवानो बाकी रह्यो होय ते चुडामां कद्देवाय-एवी चे चुडा दशवकालिकमा छे. अथवा उप-13 आचा०६ फार अग्र ते आ आचार श्रुतस्कंधनी चुडानो विषय छे अने तेथी उपकार अग्रनुज अही प्रयोजन छे, अने ते नियुक्तिकार कहे छे. आचा०
सूत्रम् उवयारेण उ पगयं आयारस्सेव उवरिमाई तु । रुक्खस्स य पन्चयस्स य जह अग्गाई तहेयाइं ॥ २८६॥ ॥८५८॥
॥८५८॥ आपणे अहींया उपकार अग्रथी अधिकार [भयोजन] छे. कारण के आ चूडाओ आचारागसूत्रना उपर वर्ते छे, एटले आचाराङ्गना विषयनेज विशेष खुलासाथी कहेवा आ चूडाओ गोठवायेली छे,जेमके वृक्षने अग्र टोच होय छे,तथा पहाडने टोच (शीखर)होय &छे अने बाकीना अग्रना निक्षेपार्नु वर्णन तो शिष्यनी मति खीलववा माटे छे तथा तेने लीधे उपकार अग्र सुखेथी समजी शकाय.कयुछेके
उच्चारिअस्स सरिसं, जं केणइ तं परूवए विहिणा। जेणऽहिगारो तमि उ, परूविए होइ सुहगेझं ॥१॥ म जे कहेवान होय तेना जेवा पदार्थो विधिए कहेवाथी जेनावडे अधिकार छे तेमां पण बीजा सरखा पदार्थो सांभळवाथी कहे
वानो मुख्य पदार्थ पण सुखेथी ग्रहण कराय छे. तेमां हमणां आ कहे, जोइए के आ चूलाओ [अग्रभागो कोणे रची छे ? शा माटे ? अथवा क्याथी उद्धरी ते त्रणनो खुलासो करे छे:
थेरेहिऽणुग्गहट्टा सीसहि होउ पागडत्थं च । आयाराओ अत्यो आयारंगेसु पविभत्तो ॥ २८७॥ श्रुतज्ञानना पारंगामी वृद्ध पुरुषो जे चौद पूर्वी छे तेमणे आरची छे, तथा शिष्यना उपर अनुग्रह लावीने के एओ सहेलथी समजे.
तथा अप्रकट (गुह्य) अर्थ खुल्लो थाय 'माटे आचारांग सुत्रमाथी आ वधा विषयोने विस्तारथी कह्यो छे. हवे जे अध्ययनमांथी जे अधिकार लीयो छे. ते विभाग पाडीने कहे छे,
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