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________________ आचा० ॥८५६॥ ॥८५६॥ तेमां प्रथम स्कंधमां नव ब्रह्मचर्य अध्ययनोने कह्यां, अने तेमां पण समस्त विवक्षित अर्थ कयो नथी अने कहेलो विषय पण ५ संक्षेपथी कह्यो छे, जेथी न कहेवायेला विषयनो कहेवा माटे तथा संक्षेपमा कहेला विषयने विस्तारथी कद्देवा तेना अग्रभूत (मुख्य) चार चुडाओ पूर्वे कहेला विषयनो संग्राहिकज अर्थ बतावे छे, तेथी ते अर्थवाळो आ बीजो अग्रश्रुत स्कंध छेः एथी आवा संबंधे है आवेला आ स्कंधनी ब्वाख्या कहेवाय छे. नाम स्थापना सुगमने छोडी द्रव्य अग्रना निक्षेपा बतायवा नियुक्तिकार कहे छे. सवध दव्यो(१) गाहण(२) आएस(३) काल(४) कम(५) गणण(६) संचए(७) भावे(८)। अग्गं भावे उ पहाण(१) बहुय(२) उवगारओ(३) तिविहं ।। नियुक्ति गाथा, ।। २८५ ।। द्रव्य अग्र बे प्रकारे छे, आगम अने नोआगम विगेरे छे. ते सिवाय व्यतिरिक्तमां द्रव्याग्र सचित्त अचित्त मिश्र द्रव्यना वृक्ष (झाड) कुंत [भाला] विगेरेनो जे अग्रभाग छे ते लेवो. अवगाहना अग्र जे जे द्रव्यनो नीचलो भाग अवगाहना करे ते अवगाहना अग्र छे. जेमके मनुष्य क्षेत्रमा मेरु छोडीने वीजा पर्वतोनी उंचाइनो चोथो भाग जमीनमा दटायेलो छे अने मेरु पर्वतनो एकद*जार जोजन भाग दटायेलो छे. आदेश अग्र-आदेश कराय ते आदेश छे अने ते व्यापारनी नियोजना छे. अहीं अग्र शब्द परिमाण वाची तेथी ज्यां परिमित पदार्थोनो आदेश देवाय ते आदेश अग्र छे. ते आ प्रमाणे-त्रण पुरुषोवडे जे कृत्य कराय छे अथवा तेमने जमाडे छे. कालाग्र-अधिकमास छे. अथवा अग्र शब्द परिमाणवाचक छे, तेमां अतीतकाल अनादि छे, अनागत [आवनारो] भविष्य है काळ अनंत छे अथवा सर्वद्धा-संपूर्ण काळ छे.
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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