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________________ आचा० ॥८५३॥ सहाथी आ टीका समाप्त करी छे, (श्लोक ग्रंथमान ९७६ ) छे. द्वासप्तत्यधिकेषु हि शतेषु सप्तम्स्रु गतेषु गुप्तानाम् । संवत्सरेषु मासि च भाद्रपदे शुक्लपञ्चम्याम् ॥१॥ ७७२ वर्ष गुप्त वंशवाळा राजाओना संवत्सरनां गये थके भादरवा महिनानी शुक्ल पंचमीए. शीलाचार्येण कृता गम्भूतायां स्थितेन टीकैषा । सम्यगुपयुज्य शोध्यं, मात्सर्यविनाकृतैरायैः ॥२॥ शीलाचार्गे गंभूता (गांधु) मां रहीने आ टीका बनावी छे, तेने मात्सर्य [ अदेखाइ ] कर्या बिना उत्तम साधुओए शोधवी. कृत्वाऽऽचारस्य मया टीकां यत्किमपि संचितं पुण्यम् । तेनाप्नुयाज्जगदिदं निर्वृतिमतुलां सदाचारम् ||३|| अने में आ आचारांगनी टीका बनावीने तेथी जे कंइ पुण्य उपार्जन कर्तुं होय, तेनाथी आ जगत्ना जीवो अतुल मोक्ष तथा सदाचार प्राप्त करो. वर्णः पदमथ वाक्यं पद्यादि च यन्मया परित्यक्तम् । तच्छोधनीयमत्र च व्यामोहः कस्य जो भवति ? ॥४॥ वर्ण (अक्षर) पद वाक्य पथ विगेरे जे माराथी पूर्बनी टीका के सूत्रमांथी छुटी गयुं होय; तो ते विद्वाने सुधारी लेवं, कारण के व्यामोह (भूल) कोनी नथी थती ? तखादित्या जेनुं बीजुं नाम छे एवी आ आचारांगसूत्रनी वृत्ति ब्रह्मचर्यश्रुतस्कंधनी छे ते समाप्त थइ. आ प्रमाणे श्रीभद्रबाहुस्वामीए रचेल निर्युक्ति सहित आचारांगसूत्र प्रथम स्कंधनी श्रीवाहरिगणिए करेल सहायथी श्रीशीलांक आचार्ये तत्वादित्या एवा बीजा नामवाळी रचेली आवृत्ति संपूर्ण थइ. सूत्रम् ||८५३ ।।
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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