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________________ आचा० विना ध्यान करे छे, मनने अनुकलमां राग नथी तेम प्रतिकूलमां द्वेष नथी. तथा ज्ञानआवरण, दर्शनावरण, मोहनीय, अंतराय, ए४ चार कर्म विधमान होवाथी छमस्थ हता, तो पण तेमणे विविध संयमना अनुष्ठानमा पराक्रम बतावीने कषाय विगेरे प्रमादने सूत्रम् ॥८४७॥ एकवार पण न कर्यो, (१५) तथा पोते पोताना आत्माथी तत्वने जाणीने संसार स्वभाव जाणनारा भगवान स्वयंबुद्ध बनी तीर्थ |P८४७॥ ४ प्रवर्तन करवा उद्यम को. कबु छे के: आदित्यादिविबुधविसरः सारमस्यां त्रिलोक्या-मास्कन्दन्तं पदमनुपमं यच्छिवं त्वामुवाच ॥ तीर्थ नाथो लघुभवभयच्छेदि तूर्ण विधत्स्वे-त्येतद्वाक्य त्वदधिगतये नो किमु स्यान्नियोगः ॥१॥ आदित्य विगेरे विबुधोनो समूह ( नव लोकांकित देवो) छे, तेमणे तेमने का के हे नाथ ! आ त्रण लोकमां साररूप ४/ IM अनुपम जे शीघ्र भवोना भय छेदनार अने शिवपद आपनार तीर्थ (जैन शासन) छे. तेमने शीघ्र स्थापन करो! आ प्रमाणे आव वाक्य तमारी स्मृति माटे काने न पडधु होत, तो आ नियोग केवी रीते यात ? तथा तीर्थ प्रवर्तन माटे केवी रीते भगवाने है उद्यम कर्यो ते बतावे छे:हा आत्म शुद्धिवडे एटले पोतानां कर्मनो क्षय उपशम तथा क्षय करवावडे सुप्रणिहित मन वचन कायाना योगो जे आयत योग kk छे, तेमने निर्मळ करी तथा विश्य कषायो विगेरेने उपशम विगेरेथी दूर करवाथी ठंडी गुण प्राप्त करेला (शांत) भगवान छे. तया है। माया रहित तेज प्रमाणे क्रोध मान लोभ रहित बनी जीवतां मुधी पांच समितिए समित ( उपयोग राखी वर्तन करनारा) तथा । त्रण गुप्तिथी गुप्त बनीने स्ह्या हता. (१६)
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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