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________________ सूत्रम् विसंयोजे छे. (दूर करे छे.) पछी करण त्रण पूर्वकज मिथ्याखने अने तेमां बाकी रहेल भागने सम्यग् मिथ्याखमा नांखतो चा० खपावे छे. ए प्रमाणे सम्यग् मिथ्याखने पण खपावे पण विशेष एटलं छे के तेमां बाकी रहेलने सम्यक्त्वमा नांखे छे एज प्रमाणे सम्यक्त्वने खपावे छे. अने तेना छेल्ला समयमां वेदक (क्षयउपशम) सम्यग्र दृष्टि थाय छे त्यार पछी क्षायिक सम्यग् दृष्टि थाय छे. ॥८१३॥ 18 आ सात कर्म प्रकृतिओ असंयत सम्यग् दृष्टिथी लइने अप्रमत्त गुणस्थान सुधी खपावे छे अने आ सम्यक्त्व पाम्या पहेलां जो आयु बन्धायु होय तो श्रेणिक राजा माफक त्यांज टके छे. पण जेणे आयु बांध्यु नथी अने क्षायिक समक्ति मेळव्यु छे. तेवो कषाय अष्टकने खपाववा करणत्रय पूर्वक आरंभे छे. त्यां यथा प्रवृत्त करण अप्रमत्तनेज होय छे अपूर्व करणमां तो स्थितिघात विगेरे पूर्वनी माफक निद्राद्विक अने देवगति विगेरे वीस तथा हास्यादि चतुष्कनो यथाक्रम बंध व्यवच्छेद उपशमश्रेणिना क्रम माफक कहेवो अने अनिवृतिकरणमां तो थीणदि त्रिक नरक तिर्यच गति तेनी अनुपूर्वि एकेंद्रिय आदि चार जाति आतप उद्योत | स्थावर सूक्ष्म साधारण ए सोळ प्रकृतिनो क्षय थाय छे. पछी आठ कषायनो क्षय थाय छे. 8 वीजा आचार्य ने मते प्रथम कषाय अष्टकने खपावे छे. त्यारपछी उपर कहेली सोळ प्रकृति खपावे छे. त्यार पछी नपुंसक वेद त्यार पछी हास्यादि पटक पछी पुरुष वेद पछी स्त्री वेद खपावे छे. पछी अनुक्रमे क्रोधथी माया सुधी त्रण संज्वलन कपायने खपावे छे. अने संज्वलन लोभना खंड खंड करी तेमांना बादर खंडोने खपावतो अनिवृत्ति बादर गुणस्थानवाळो होय छे. अने सूक्ष्म खंडोने खपावतो सूक्ष्म संपराय होय छे. तेना अंतमा ज्ञानावरणीनी दर्शनावरणीनी अतरायनी तथा यशकीर्ति उच्च गोत्र मळी | सोळ प्रकृतिनो बंध व्यवच्छेद करे छे. पछी क्षीण मोही बनीने अंतर्मुहर्त रहीने तेना अन्तमा छेल्ला समयना पहेलामां वे निद्राने ॐॐॐ
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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